हिमालय के विशालकाय पर्वतों (केदारनाथ पर्वत, खर्चकुंड पर्वत, भरतकुंड पर्वत) की गोद में 3,553 मी. (11,657 फीट) की ऊँचाई पर बसा केदारनाथ मंदिर चार धामों से एक है। यह बारह ज्योर्तिलिंग (केदारनाथ ग्यारहवां ज्योर्तिलिंग है) और पंच केदार (भगवान शिव के मंदिर) में भी गिना जाता है। यहां भगवान शिव का स्वयंभू लिंग स्थापित है। रूद्रप्रयाग जिले में स्थित केदारनाथ मंदिर बनावट कत्युरी शैली की है। मंदिर का निर्माण पाण्डव वंश के जनमेजय ने कराया था। कहा जात है कि 8वीं शताब्दी में इसका आदि गुरू शंकराचार्य ने जीर्णोधार कराया था।
कपाट खुलने व बंद होने का समय :
हिमालयी क्षेत्र होने के कारण यह क्षेत्र लगभग 6 से 7 महिने बर्फ की मोटी चादर से ढका रहता है। जिस कारण मंदिर 6 महिने की अवधि के लिये ही खुलता है। बाकी के 6 मास केदारनाथ की प्रतिमा को उखीमठ में रखा जाता है। कभी कभी सितम्बर के अंतिम सप्ताह या अक्टूबर में ही केदारपुरी क्षेत्र में हल्का हल्का या मध्यम हिमपात होना शुरू हो जाता है। केदारनाथ के धाम वैशाखी के बाद (अपै्रल मास) में खुलते हैं। और लगभग 6 महिने बाद वृश्चिक संक्रान्ति के दो दिन पूर्व कपाट बंद कर दिये जाते है। केदारनाथ के पुजारी जंगम ब्राह्मण होते है जो कि कर्नाटक के मैसूर क्षेत्र से होते है।
केदारनाथ आपदा :
हिमालय के पीछे चौराबाड़ी ग्लेशियर (मंदाकिनी नदी का उद्गम स्थान) है जो कि गांधी सरोवर के नाम से भी जाना जाता है। पहले इसे पार्वती झील भी कहा जाता था। 2013 में यही ग्लेशियर का हिस्सा टूटने से केदार पुरी में भयानक बाढ़ आई थी। इस त्रासदी में बहुत से श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी। केदारपुरी से नीचे स्थित रामबाड़ा इलाके का पूरी तरह से नामोनिशान मिट गया। इस आपदा से मंदिर को कुछ बाहरी खरोच जरूर आयी लेकिन बाढ़ के साथ आया एक बड़ी चट्टान मंदिर के ठीक पीछे आकर रूक गई जिससे बाढ़ का पानी मंदिर के दायें बायें तरफ से निकल गया। उत्तराखण्ड की यह बड़ी आपदाओं में से एक थी। वैज्ञानिकों ने यह भी दावा किया है कि केदारपुरी का यह क्षेत्र लगभग 400 सालों तक बर्फ के नीचे दबा हुआ था जिसका प्रमाण मंदिर की दीवारों पर मिलते हैं । दीवारों पर ग्लेशियर की रगड़ के निशान मौजूद है। वैज्ञानिकों का मत है कि 13 वीं शताब्दी के आस पास आये एक छोटे हिमयुग के दौरान यह मंदिर बर्फ के नीचे दबा रहा हो।
अनुश्रुति :
केदारनाथ से संबधित अनेक कथायें हैं। कहा जाता है कि बद्रीनाथ धाम भगवान विष्णु की तपोस्थली बनने के बाद भगवान शिव और माता पार्वती ने केदारनाथ क्षेत्र को अपना निवास स्थान बनाया। एक कथा के अनुसार भगवान विष्णु के अंश नर और नारायण ने यहां भगवान शिव का तप कर उन्हे प्रसन्न किया था और उनसे इस क्षेत्र में ज्योर्तिलिंग के रूप में बसने को कहा। शिव पुराण के अनुसार महाभारत युद्ध के पश्चात पांडवों को गुरु हत्याए गोत्र हत्या ए अपने भाइयो की हत्या का दुःख सताने लगा। इसके प्रायश्चित के लिए वे श्री कृष्ण के पास गएए उनके समझाने पर भी जब पांडव प्रायश्चित करने का हठ नहीं छोड़ा तो श्रीकृष्ण ने उनसे वेद्ब्यास के पास जाने को कहा। वेदव्यास ने उन्हें राय दी कि वे कैलाश क्षेत्र में जा के भगवान शिव की तपस्या करे और उन्हें प्रसन्न कर अपने पाप से मुक्ति पाये। बहुत समय हिमालय में भ्रमण के दौरान जब एक स्थान पर आकर कुछ दिन वही भगवान शिव की स्तुति करने लगे तब थोड़ा आगे एक विशाल काय बैल पर उनकी नज़र पड़ी। माना जाता है स्वयं भगवान शिव उनकी परीक्षा लेने हेतु बैल रूप में वहां प्रकट हुए थे, लेकिन गोत्र हत्या के दोषी पांडवो से नाराज़ थे और उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे। परन्तु पांडवो ने उन्हें पहचान लिया था और उनका पीछा करने लगे। एक समय ऐसा आया की बैल ने अपनी गति बढ़ानी चाही लेकिन भीम दौड़कर बैल के पीछे आने लगा। ये देख भगवान शिव रुपी बैल ने स्वयं को धरती में छुपाना चाहा ए जो कि बैल का अग्र अर्ध भाग धरती में समाया, वैसे ही भीम ने बैल की पूंछ अपने हाथो से पकड़ली। यही पीछे का भाग केदारनाथ के रूप में विद्यमान हुआ। कहा जाता है की बैल का अग्रभाग सुदूर हिमालय क्षेत्र में जमीन से निकला जो की नेपाल में थाए जो की प्रसिद्ध पशुपति नाम से पूजा गया। बैल का शेष भाग यानी भुजाएं तुंगनाथ में, नाभि या मध्य भाग मदमहेश्वर में, मुख रुद्रनाथ में; शेष नेपाल पशु पतिनाथ में, तथा जटाएं कल्पेश्वर में निकली। पंचकेदारों में भगवान शिव के विभिन्न अंगों की पूजा की जाती है।
कैसे पहुंचे :
चार धामों तक पहुंचने के लिये अब बहुत ही आसान हो गया है। यहां पहुंचने के लिये सड़क, रेल और हवाई मार्ग उपलब्ध है।
मोटर मार्ग- केदारनाथ को जाने के लिये रूद्रप्रयाग से होते हुये गुप्तकाशी फिर वहां से गौरीकुण्ड पहुंचा जाता है (रूद्रप्रयाग - अगस्तयमुनि - गुप्तकाशी - फाटा - सोनप्रयाग - गौरीकुण्ड)। गौरीकुण्ड तक मोटर मार्ग है। गौरी कुण्ड से फिर आगे को पैदल मार्ग है।
सड़क मार्ग से पहुंचने के लिये गढ़वाल क्षेत्र की ओर से ऋषिकेश, हरिद्वार से रूद्रप्रयाग (161 किमी.) तथा कुमाऊँ की ओर से रानीखेत से कर्णप्रयाग (130 किमी.) या कौसानी से कर्णप्रयाग (97 किमी.) वाया ग्वालदम होते हुये आया जाता है। कर्णप्रयाग से रूद्रप्रयाग जाया जाता है।
रेल मार्ग- कर्णप्रयाग से रेल के लिये गढ़वाल क्षेत्र में हरिद्वार या ऋषिकेश तक रेल मार्ग उपलब्ध है। कुमाऊँ क्षेत्र से काठगोदाम तक रेल मार्ग उपलब्ध है।
वायु मार्ग- केदारनाथ के लिये हेलीकॉपटर सेवा सरकार द्वारा मुहैया कराई गई है। सोनप्रयाग और फाटा से हेलीकॉपटर सेवा उपलब्ध है। हवाई सफर में देहरादून का जोलीग्रांट (311 किमी.) और पंतनगर (364 किमी.) का हवाई अड्डा है, वहां से फिर सड़क मार्ग से केदारनाथ आया जाता है।
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