बीज बचाओ आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य पारम्परिक बीजों का संरक्षण करना और कुछ निश्चित बीजों को बोकर व्यवसायीकरण करने का विरोध करना था। इस आंदोलन का उदय 80 के दशक के अन्त में टिहरी गढ़वाल के हेवलघाटी क्षेत्र में विजय जरधारी, धुमसिंह नेगी तथा उनके साथियों द्वारा तब हुआ जब सरकारी कृषि वैज्ञानिकों द्वारा उस क्षेत्र के वासियों को पारम्परिक अनाजों को छोड़कर सोयाबीन, और चावल जैसी एक प्रकार की फसलें बोने को कहा जाने लगा।
80 के दशक के बाद यहां पहाड़ो पर भी हरित क्रांति जोर पकड़ने लगी थी। जिसके फलस्वरूप सरकारी वैज्ञानिकों द्वारा रसायनिक खेती पर जोर दिया जाने लगा। इसमें लोगों से कहा जाने लगा कि आप मिश्रित खेती को छोड़कर सोयाबीन उगाइये और धनवान बनिये। जिसके विरोध में विजय जरधारी ने बीज बचाओं आंदोलन का आह्नान किया गया। इसी आंदोलन का नतीजा है कि किसान के साथ साथ सरकार भी पारम्परिक फसलों को लेकर जागरूक हुई। इस आंदोलन के तहत कई फसलों के बीजों का संरक्षण भी हुआ । इस आंदोलन का एक प्रेरणा इस रूप में भी देखी जा सकती है कि उत्तराखण्ड की पहली आर्थिक रिपोर्ट के कृषि अध्याय में इस आंदोलन और विजय जरधारी का जिक्र मिलता है।
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