सोबन सिंह जीना (1909–1989): ग्राम सुनौली, मल्ला स्यूनरा, अल्मोड़ा। प्रबुद्ध विधिवेता, कर्मठ समाज सेवी, कुशल पत्रकार, सिद्धान्तों की राजनीति के मसीहा।
सोबन सिंह जीना जी की प्रारम्भिक शिक्षा बिसौली जिला अल्मोड़ा में हुई। जी. आई.सी., नैनीताल से हा.स्कूल और अल्मोड़ा से इन्टरमीडिएट परीक्षाएं उत्तीर्ण की। इलाहाबाद वि.वि. से एल.एल.बी. की उपाधि ग्रहण की। बाल्यावस्था से ही आप प्रखर बुद्धि के थे। विद्यार्थी जीवन में हर परीक्षा आपने प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की और कई छात्रवृत्तियां प्राप्त की। 1933 में आपने अल्मोड़ा आकर वकालत प्रारम्भ कर दी। अपने अध्यवसाय, लगन, ईमानदारी और अनुशासन से आप शीघ्र ही लोकप्रिय और सफल अधिवक्ता स्थापित हो गए। वर्षों तक आप अल्मोड़ा बार एसोसिएशन के सर्वसम्मत अध्यक्ष रहे। आपके निजी पुस्तकालय में विधि एवं उत्तरांचली समाज, संस्कृति, इतिहास एवं भारतीय दर्शन, अंग्रेजी साहित्य, पुरातत्व आदि से सम्बन्धित पुस्तकों का विशाल संकलन था। दुख की बात है कि सरल हृदय और उदार प्रकृति के जीना जी के पुस्तकालय की कई पुस्तकें लोग उनके जीते जी उठा ले गये।
सोभन सिंह जीना जी केवल विधिवेता ही नहीं, कर्मठ समाज सेवी भी थे। वकालत के अपने कार्यकाल के दौरान ही आप जिला बोर्ड के सदस्य और बाद में इसकी शिक्षा समिति के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। उन दिनों अल्मोड़ा बहुत बड़ा जिला था। जीना जी को कुमाऊँ के बहुत बड़े भाग को निकट से देखने का अवसर मिला। 'कुमाऊँ राजपूत परिषद' का गठन कर इसके माध्यम से इन्होंने क्षत्रिय समाज में सुधार लाने के लिए सक्रिय भूमिका निभाई। अंग्रेजी सरकार ने इन्हें 'रायबहादुर' की पदवी देकर सम्मानित किया, किन्तु इसे इन्होंने कभी भी सम्मानसूचक नहीं समझा।
सोभन सिंह जीना जी को कांग्रेस में सम्मिलित करने के हर सम्भव प्रयास किए गए। इन्हें कांग्रेस की नीति नहीं सुहाती थी। वे कुमाऊँ में 'भारतीय जनसंघ' के संस्थापक सदस्यों में से थे। इस दल के आप उ.प्र. के प्रान्तीय उपाध्यक्ष भी रहे। 'भारतीय जनता पार्टी' के गठन के पश्चात आप इसके जिला अध्यक्ष बनाए गए। कांग्रेस के विरुद्ध जीना जी ने 1952, 1977 और 1980 में बारामण्डल विधान सभा क्षेत्र से और 1971 में अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ क्षेत्र से लोक सभा का चुनाव लड़ा। इन चुनावों में इन्हें केवल 1977 के चुनाव में सफलता मिली। पहली बार उ.प्र. शासन में काबिना स्तर के पर्वतीय विकास मंत्री बनाए गए। सोभन सिंह जीना जी को शिक्षा के प्रति बहुत लगाव था। अपने जीवनकाल में इन्होंने कई शिक्षण संस्थाओं को संरक्षण और सहायता दी। मृत्यु से पूर्व आपने बड़ी सावधानीपूर्वक उन सभी पत्रों को जला दिया, जो इतिहास के महत्वपूर्ण श्रोत होते। इन पत्रों में देश के हर विचारधारा के शीर्षस्थ नेताओं के पत्र भी थे। जीना जी के सम्बन्ध में कम ही जानकारी उपलब्ध है जनसामान्य के पास। अन्तर्मुखी विचारधारा के व्यक्ति थे आप। अपने सम्बन्ध में किसी को कुछ बताते नहीं थे। अल्मोड़ा के पत्रकार और शिक्षक जगदम्बा प्रसाद जोशी ने जीना जी को श्रद्धान्जलि देते हुए यूं विचार व्यक्त किये:- "परिस्थितियों के प्रति निर्भीक, शत्रुओं के प्रति भी मित्रवत व्यवहार, स्वयं में आदर्श, विद्वता में एक व्यक्ति नहीं संस्था थे स्वर्गीय श्री जीना।"
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