श्री महादेव गिरी महाराज पिन्डारी ग्लेशियर में तप किया करते थे, देवकृपा वस स्व० श्री गुंसाई सिंह भण्डारी जी को उनके दर्शन हुये तथा उन्होंने महाराज से सोमेश्वर आने का अनुरोध किया। श्री महाराज जी भ्रमण के दौरान सोमेश्वर के कपिलेश्वर महादेव मन्दिर में पधारे तथा फिर जंगल की ओर चले गये। श्री श्री 102 महादेव गिरी महाराज के गुरू श्री श्री 1008 दौलत गिरी जी थे, जिनका आश्रम दुध्धेश्वर महादेव गजियाबाद में थाए जहाँ रावण द्वारा तप किया गया था। महाराज सन् 1936 में एड़ी मन्दिर के निकट बाँज वृक्ष के खोखले में तपोलीन हो गये। किवंदती के अनुसार जंगल घास काटने गई महिलाओं को बाज के खोखले में बाबा महादेव गिरि महाराज को ध्यानमुद्रा में देखा। जब ये बात अन्य ग्रमीणों को पता चली तब वे लोग यहाँ बाबा को देखने पहुँचे। महाराज जी को तपोशक्ति से ज्ञात हो गया था कि ऐड़ी मन्दिर के निकट भूमि पर शिव प्रतिमा विद्यमान है। बाबा के आदेश पे ग्रामीणों ने बाज के पेड़ के निकट खुदाई की तो गणेश, शिव और पार्वती की मूर्ति निकली। यहाँ पर एड़ाद्यो मंदिन का निर्माण कर मूर्तियाँ स्थापित करी गयी। महाराज श्री महादेव गिरी जी की भक्ति व शक्तियों का आभास कर अंग्रेज डी०एफ०ओ० श्री एडम्ड भी उनके भक्त हो गये तथा आश्राम निर्माण हेतु वन भूमि महाराज को दे दी। महाराज द्वारा स्व० श्री गुंसाई सिंह को स्मरण किया गया तो वे पुनः महाराज जी के दशनार्थ आये। श्री गुंसाई सिंह जी महाराज की तपोशक्ति को पहचान गये और उन पर पूरी तरह समर्पित हो गये। महाराज जी की अद्भुत शक्ति देख क्षेत्रवासी उनके भक्त हो गये और धीरे-धीरे वहां मन्दिर का निर्माण शुरू हुआ, फिर श्री हयात सिंह भण्डारी जी द्वारा अपने पिता जी का अनुसरण करते हुये मन्दिर का निर्माण का बेड़ा उठाया जो आज भव्य रूप ले चुका है। एड़ाद्यो-सोमेश्वर मे 7 किमी० दूरी पर है तथा वहां पर विन्ता लोध व गोलुछीना पैखाम मार्ग से वाहन द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है। महाराज जी के आने से भक्त वहां आने लगे। धीरे-धीरे महाराज जी द्वारा धर्म प्रचार हेतु भागवत् किये जाने लगे जो गुरू जी की प्रेरणा से ही अनवरत प्रतिवर्ष श्रावण मास में भागवत कथा का आयोजन आज भी होता है और यज्ञ की पुर्णाहुति भाद्र मास कृष्ण पक्ष पंचमी को होती है। बाबा महादेव गिरि जी द्वारा यहां सस्कृत विद्यालय की भी स्थापना की गयी, जो अब हल्द्वानी में बाबा महादेव गिरि संस्कृत विद्यालय के नाम से संचालित किया जा रहा है। महाराज जी ने सन् 1967 में भाद्र पद कृष्ण पक्ष पंचमी को एड़ाद्यो में ही ब्रह्मलीन हो गये। एड़ाद्यो एक सिद्ध पीठ व तपोभूमि ही महाराज जी के ब्रह्मलीन होने के पश्चात् एड़ाद्यौ आश्रम श्री श्री 108 देवनारायण गिरी महाराज द्वारा संचालित किया गया। जन्म से प्रज्ञाचक्षु श्री श्री 108 देवनारायण गिरी महाराज द्वारा उसी तपोभूति को तीथधाम के रूप में विख्यात कर दिया। सोमेंश्वर, मनान, मजखाली, बिंता, बग्वालीपोखर क्षेत्र के लोगों की मंदिर पर गहरी आस्था है। अल्मोड़ा, बागेश्वर समेत प्रेदश के अन्य क्षेत्रों से भी यहाँ काफी संख्या में भक्तजन सालभर पहुँचते है।
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