भाषा-बोली के आधार पर सदियों से गढ़वालियों की पहचान का 'लिटमस-टेस्ट' रहा है- 'बल'। 'बहुत बलबला रहा है जरूर गढ़वाली होगा', कहकर अपने सामान्य -ज्ञान की शेखी बघारी जाती रही है। फिर एक आम गढ़वाली की भी ईमानदार स्वीकारोक्ति होती है कि 'भात' बिन खाने में और 'बल' बिन बोलने में 'छपछपी' नहीं लगती। 'छपछपी' अत तरावट जन्य-सुखानुभूति।
बल गढ़वाली बोली का तकिया कलाम वरन सशक्त व्याकरणीय आधार है। Direct-Indirect Speech के पेचीदे नियम गढ़ने वाले आंग्ल-भाषा-शास्त्रियों की दृष्टि में अगर गढ़वाली 'बल' आ जाता तो शायद आज अंग्रेजी का महत्वपूर्ण शब्द होता और Oxford Dictionary में इसका परिचय कुछ इस प्रकार होता-
Bal- (Of Garhwali Origin) In dicates that the reporter is reporting someone else's speech and not his.
For example - I was angry bal and I just picked a stone and threw at
him.
स्पष्ट है कि ('बल' के कारण) न ही वक्ता क्रोध में था और न ही उसने पत्थर फेंका। गढ़वाली में 'बल' की भूमिका कुछ इस प्रकार रेखांकित की जा सकती है-
1. वक्ता द्वारा अन्यपुरूष कथन (In direct Speech) का भाव प्रकट करने के लिए।
2. किसी शब्द पर जोर देने के लिए (Emphasizer)। 'मैंन अपणी आंख्यून देखि बल'।
3. किसी कथन की विश्वसनीयता पर संदेह व्यक्त करने के लिए- 'मंत्री जी छा बल अयां तुमरा गौं मां, क्या-क्या घोषणा करि गयां?
4. कथा-कहानी सुनाने में- 'एक छ बल रज्जा। रज्जै छै बल द्वी राणी' या 'बिराली-बिराली कख जांदी? बल माछा मन्न।'
'बल' गढ़वाली बोली का न सिर्फ सशक्त व्याकरणीय आधार है बल्कि यह भाषा में लालित्य भी उत्पन्न करता है और कदाचित इसी लालित्य मोह के कारण इसका अनावश्यक प्रयोग भी देखने में आता है-
'टेस्ट त दीलि बल पर अगनैं अपणु-अपणु भाग। तन थोड़ा-भोत सिफारिश भी छैंछ बल पर सुणन् मां औणू कि नोट छन बल चलणा।'
'बल' गढ़वालियों के जीवन में इस तरह रच-बस गया है कि प्राय: उनकी हिन्दी में भी यह अपना स्थान बना ही लेता है। इसमें बुराई भी नहीं। किन्तु कभी-कभी यह भ्रम अवश्य पैदा कर देता है, जैसा एक बार मेरी कक्षा में हुआ जब पैनल-इंस्पेक्टर द्वारा एक छात्र से बल की परिभाषा पूछी गई तो छात्र का उत्तर कुछ इस प्रकार था 'बल वह कारक है बल जो किसी वस्तु की स्थिति या अवस्था में परिवर्तन करता है बल या परिवर्तन करने का प्रयास करता है बल' मुझे स्पष्ट करना पड़ा कि छात्र की परिभाषा में पहला बल भौतिक बल है, शेष गढ़वाली बल हैं।
भावाभिव्यक्ति हेतु शाब्दिक मितव्ययिता का अप्रतिम उदाहरण भी है गढ़वाली'बल'। महाभारत में जहाँ युद्धिष्ठिर पूरा वाक्य 'अश्वत्थामा हतो हत: नरौ वा कुंजरौ वा' कहकर भी अपनी सत्यवादिता की आंशिक ही रक्षा कर पाये थे वहीं अगर वार्तालाप गढ़वाली में होता तो युद्धिष्ठिर मात्र 'बल' बोलकर एक तीर से दो के शिकार कर सकते थे।
'बल' के साथ हास-परिहास भी खूब जुड़ा है। उत्तराखण्ड आन्दोलन के दिनों में एक जोक काफी प्रचलित हो गया था कि आन्दोलनकारियों को लक्ष्य प्राप्ति इसलिए नहीं हो पा रही है क्योंकि जब भी गढ़वाली 'बल' लगाते हैं, कुमाउंनी उसे 'ठहरा' देते हैं, नतीजतन आन्दोलन में ठहराव आ गया है।
अद्भुत है 'बल' का बल। अगर Sorry अंग्रेजी का विलक्षण शब्द है तो 'बल' गढ़वाली का। 'बल' से एक तटस्थता का भाव भी झलकता है। निर्विकार, निर्लिप्त। यह भाव गढ़वालियों की भाषा से शनै:शनै: उनके जीवन-दर्शन में भी घर कर चुका है-
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