उत्तराखण्ड की ऐतिहासिक धरोहरों में से एक लाउडन फोर्ट पिथौरागढ़ में स्थित है। 1790 के बाद कुमाऊँ गोरखा शासन में आ जाने के बाद इसका निर्माण गोरखाओं द्वारा किया गया और इसका नाम बाउलकीगढ़ किला रखा गया। 1815 गोरखाओं की अंग्रेजों के साथ सिंगोली की संदी के उपरांत ये किला अंग्रेजों के अधीन आ गया और इसका नाम बाउलकीगढ़ किला के बदल के लाउडन फोर्ट रख दिया गया।
यह किला गोरखाओं द्वारा पितरौटा गांव की चोटी पर 1791 में सुरक्षा की दृष्टि से बनाया गया था। जहां गोरखाओं के सैनिक और सामंत रहते थे। तब इस किले का नाम बाउलकीगढ़ था। वर्तमान में इसका नाम बदलकर सोरगढ़ किला रखने की मांग उठ रही है। (Pithoragarh Fort, Loudon Fort History)
इस किले को 6.5 नाली क्षेत्रफल भूमि में बनाया गया था। किले में प्रवेश करने के लिए दो दरवाजे हैं। दो मंजिले इस किले में 15 कमरे है। इस किले के चारों ओर सुरक्षा की दृष्टि से अभेद्य परकोटे नुमा दीवार बनाई गई थी जिसमें बंदूक चलाने के लिए 152 छिद्र मचान बनाए गये। किले के भीतर एक तहखाना भी था जिसका प्रयोग गोरखा सैनिक भण्डारण के लिए करते थे। इसके भीतर कई गुप्त दरवाजे और रास्ते भी बनाये गयें। किले के मचान इस प्रकार से बनाये गये थे कि इसमें सैनिक बैठकर व लेटकर हथियार चला सके। इस किले की लंबाई 88.5 मीटर और चैड़ाई 40 मीटर है तथा इसकी दीवार की ऊँचाई 8.9 फीट है।
1815 में संगोली की संधि के पश्चात अंगे्रजों ने इस किले को अपना मुख्यालय बनाया तथा इस किले का नाम बाउलकीगढ़ से बदलकर लाउडन फोर्ट कर दिया। 1881 में इस किले से तहसील का कामकाज शुरू किया गया। इस किले के भीतर एक शिलापट्ट है जिसमें प्रथम विश्व युद्ध में शहीद होने वाले सैनिकों का उल्लेख किया गया है। इस शिलापट्ट में लिखा है - परगना सोर एवं जोहार से विश्व युद्ध में 1005 सैनिक शामिल हुए थे, जिनमें 32 सैनिकों ने अपने प्राण न्योैछावर कर दिये। (london fort pithoragarh)
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