वंशीनारायण भगवान् विष्णु को समर्पित यह देवालय गढ़वाल मंडल के चमोली जनपद की उरगम घाटी (12000 फीट) के ग्राम कलगोठ में आगे एक चट्टान के निकट अवस्थित है। कत्यूर शैली में बने वंशी नारायाण मंदिर में भगवान विष्णु की चतुर्भुज मुर्ति विराजमान है तथा मंदिर के अन्दर गर्भगृह वर्गाकार है। मान्यता है कि इस मंदिर में साल में 364 दिन देवर्षि नारद भगवान विष्णु की पूजा करते है और सिर्फ एक दिन के लिए कपाट लोगों के दर्शन और पूजा के लिए खोल दिए जाते है। रक्षाबंधन के पावन पर्व पर यह मंदिर साल में केवल एक दिन मनुष्यों के लिए खुलता है। सुबह मंदिर के कपाट खुलते है तथा सूर्यास्त होते ही कपाट बंद कर दिये जाते है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पाण्डवों के काल में हुआ था। रक्षाबंधन के दिन श्रद्धालुुओं में महिलाओं की भीड़ अधिक रहती है, इस दिन महिलाएं यहां भगवान विष्णु को राखी बांधती है। Bansi Narayan Temple Uttarakhand
रक्षाबंधन के दिन कलगोठ गांव के प्रत्येक घर से भगवान के लिए मक्खन आता है और इसी से प्रसाद तैयार किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु का श्रृंगार होता है। यहां मंदिर में भगवान विष्णु और शिव दोनों के दर्शन होते है इनके अलावा भगवान गणेश और वन देवियों की मूर्तियां भी यहां मौजूद है।
पौराणिक कथा
कथा इस प्रकार है कि एक बार राजा बलि ने भगवान विष्णु से उनका द्वारापाल बनने का आग्रह किया है जिस पर भगवान विष्णु द्वारा राजा बलि का आग्रह स्वीकार कर लिया गया और उनके साथ पाताल लोक चले गये। काफी दिनों तक भगवान विष्णु के दर्शन न होने के कारण माता लक्ष्मी चिंतित रहने लगी जिसके बाद वे नारद मुनि के पास गयी जहां उन्हें नारद मुनि से पता चला कि भगवान विष्णु पाताल लोक में राजा बलि के द्वारपाल बने हुए हैं। माता लक्ष्मी ने नारद मुनि से भगवान को वापस लाने का उपाय पूछा जिस पर देवर्षि ने कहा कि माता लक्ष्मी को श्रावण मास की पूर्णिमा को पाताल लोक जाकर राजा बलि को राखी बांधनी होगी जिसके बदले में भगवान विष्णु को वापस मांग सकती है। माता लक्ष्मी ने देवर्षि को साथ में चलने का आग्रह किया जिस पर नारद मुनि भी माता के साथ पाताल लोक चले गये। नारद मुनि के पाताल लोक चले जाने के बाद उनकी अनुपस्थिति में कलगोठ गांव के जार पुजारी ने भगवान विष्णु की पूजा की और तब से यह परम्परा चली आ रही है। ये भी कहा जाता है कि पाताल लोक के बाद भगवान विष्णु इसी स्थान पर प्रकट हुए थे।
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