बच्चू लाल भट्ट | |
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जन्म | 1909 |
जन्म स्थान | लैन्सडाउन |
पिता | श्री रामचन्द्र भट्ट |
उपनाम | गढ़वाली |
मृत्यु | 1938 |
बच्चू लाल भट्ट का जन्म लैन्सडाउन (गढ़वाल) के नजदीक किसी गांव में हुआ। देश की स्वाधीनता के लिए आत्मा की आहुति देने वाला भारत माता का नौनीहाल।
अमृतसर में किसी दुकान में नौकरी करते हुए 1929 में लाहौर में कांग्रेस अधिवेशन में क्रान्तिकारी शम्भूनाथ 'आजाद' के संपर्क में आए और 'नौजवान भारत' सभा के सदस्य बन गए। 1931 में अम्बाला- मनौली गोलीकांड के सिलसिले में बंदी बना लिए गए। अदालत ने शम्भूनाथ आजाद' को और इन्हें बरी कर दिया, किन्तु इनके साथी सरदार मनसा सिंह को फाँसी की सजा सुना दी और अमृतसर निवासी नरेन्द्रनाथ पाठक और बच्चूलाल के पिता रामचन्द्र भट्ट को दस-दस साल कारावास का दंड दिया।
बच्चू लाल ने अपने को दक्षिण भारत में 'नौजवान भारत सभा' द्वारा प्रस्तावित एक्शन टीम के लिए प्रस्तुत किया। रोशन लाल मेहरा के साथ वे मद्रास पहुँचे। आर्थिक संकट को दूर करने के लिए सिटी बैंक, मद्रास को लूटने का निश्चय किया गया। 26 अप्रैल, 1933 को बच्चूलाल अपने साथियों के साथ उटकमाउंट टाउन पहुँचे। 27 अप्रैल की रात उन्होंने टाइगर हिल में बिताई। सभी साथी गोरा सैन्याधिकारियों की वर्दी पहने थे। 28 अप्रैल, 1933 को उन्होंने 12 बजे लगभग पुलिस और भीड़ की उपस्थिति में ऊटी बैंक को लूटा और टैक्सी में नीलगिरि पर्वत चले गए। किन्तु दक्षिण भारत की भाषा न जानने और रूप-रंग तथा आकार-प्रकार में दक्षिणात्यों से भिन्न होने के कारण 30 अप्रैल को जब वे भूखे प्यासे विश्राम कर रहे थे तो बच्चूलाल पकड़ लिये गये। इस अपराध के लिए उन्हें 18 वर्ष कालापानी की सजा मिली। छह माह बाद बच्चूलाल विक्षिप्त हो गए। अपने शरीर से रक्त निकालकर वह जल में मिलाकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। वह किसी से बात नहीं करते थे। 1938 में शम्भूनाथ 'आजाद' के साथ उन्हें वापस भारत भेज दिया गया। मानसिक स्थिति ठीक न होने के कारण उन्हें बनारस, पूना आदि के पागलखानों में रखा गया। उसके बाद उनका कोई अता-पता नहीं चला। सम्भवतः पागल के रूप में ही उनकी मृत्यु हुई। देश की आजादी के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग कर देने वाले ऐसे क्रान्तिकारी को नमन।
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