बाबा मोहन उत्तराखंडी | |
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जन्म | 03 दिसम्बर, 1948 |
जन्म स्थान | ग्राम - बठोली, पौड़ी |
पिता | श्री मनबर सिंह नेगी |
पत्नी | श्रीमती कमला देवी |
सेवा | आर्मी, समाजसेवा |
मृत्यु | 09 अगस्त, 2004 |
मोहन सिंह नेगी (बाबा मोहन उत्तराखंडी) का जन्म 3 दिसम्बर, 1948 में पौड़ी जिले एकेश्वर ब्लाक के बठोली गांव में हुआ था। इंटरमीडिएट और उसके बाद आई.टी.आई. की पढ़ाई पूरी करने के पश्चात 1970 में वे सेना के बंगाल इंजीनियरिंग ग्रुप में बतौर क्लर्क भर्ती हो गए। सेना की नौकरी उन्हें रास नहीं आई और 1994 में नौकरी छोड़कर उन्होंने राज्य आंदोलन में उतर जाने का निर्णय किया।
2 अक्टूबर 1994 को रामपुर तिराहे में हुई घटना के बाद उन्होने पूरी जिन्दगी भर बाल, दाड़ी न काटने व गेरूआ कपड़े धारण करने की शपथ ली। उत्तराखंड राज्य की मांग, गैरसैंण को उत्तराखंड की राजधानी बनाने और अन्य महत्पूर्ण मुद्दों के लिए उन्होनें 13 बार आमरण अनशन किया। 1997 में लैंसडाउन में राज्य निर्माण के लिए अनशन, 2001 में गैरसैंण में अनशन, 31 अगस्त 2001 को पौड़ी बचाओं आंदोलन, 13 दिसंबर से फरवरी 2003 तक चंदकोट गढ़ी पौड़ी में गैरसैंण राजधानी के लिए अनशन आदि किये। राज्य की स्थायी राजधानी गैरसैंण बनाने सहित पांच मांगों को लेकर 2 जुलाई 2004 को जनपद चमोली के बेनीताल स्थित “टोपरी उडयार” में 38 दिन के आमरण अनशन में बैठने के बाद बाबा मोहन उत्तराखंडी ने 9 अगस्त 2004 को कर्णप्रयाग के सरकारी अस्पताल में अंतिम साँस ली। बाबा मोहन उत्तराखंडी गैरसैंण को राजधानी बनाने के इतिहास में अपना नाम अमर कर गए।
बाबा मोहन उत्तराखंडी की अन्य चार मांगे थी कि मुजफ्फरनगर कांड के अपराधियों को सजा मिले, उत्तराखंड की शिक्षा नीति रोजगारपरक हो, युवाओं को रोजगार मिले और पर्वतीय क्षेत्र से पलायन रोकने को ठोस नीति बने।
उत्तराखंड राज्य निर्माण में बाबा उत्तराखंडी ने खुद को अर्पित कर दिया था उनकी माँ की मृत्यु पर भी घर नहीं गए। यहाँ तक की उनकी पत्नी और 3 बच्चों की ममता भी उन्हें डिगा नहीं पाई और अंतिम सांस तक बाबा उत्तराखंडी जनता की लड़ाई में लगे रहे।
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