अनुसूया प्रसाद बहुगुणा | |
जन्म: | फरवरी 18, 1894 |
जन्म स्थान: | अनुसूया आश्रम (चमोली) |
शिक्षा | बी.एस.सी, एल.एल.बी |
पिता: | - |
माता: | - |
पत्नी | - |
व्यवसाय: | स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी |
मृत्यु | 23, मार्च 1943 |
स्वाधीनता संग्राम के प्रखर, निर्धक और नि:स्वार्थ सेनानी। प्रभावशाली वक्ता, राष्ट्र प्रेमी और लोकप्रिय जनसेवक। ‘गढ़केसरी' सम्मान से सम्बोधित।
अनुसूया प्रसाद बहुगुणा जी का जन्म पुण्यतीर्थ अनुसुया देवी आश्रम में हुआ, जो कि चमोली में स्थित है। देवी के इसी नाम पर इनके माता पिता ने इनका नाम अनुसुया रखा। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा उनके गांव नंदप्रयाग में ही हुई। उसके बाद ये पौड़ी आये जहां से इन्होने हाईस्कूल पूरा किया। उसके बाद इलाहाबाद (प्रयागराज) इन्होने स्नातक (बी.एस.सी) व उसके बाद एल.एल.बी (1916) किया। शिक्षा के समय से ही इनके मन में देशभक्ति के लिये ज्वाला उठने लगी। ये नायब तहसीलदार के पद पर भी रहे।
1919 में बैरिस्टर मुकुन्दी लाल के साथ कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने लाहौर गए। वहाँ से लौटकर समाज सुधार और जन संगठन के कार्यों में जुट गए। उस समय तक गढ़वाल में कुली उतार, कुली बेगार और बर्दायश नामक कुप्रथाओं के विरुद्ध तथा कुछ समय पश्चात जंगलात कानून में सरकारी हस्तक्षेप के विरुद्ध जन-आन्दोलन तीव्र गति पकड़ चुका था । दोनों आन्दोलनों में इन्होंने सफल नेतृत्व किया। फलस्वरूप इन कुप्रथाओं का अन्त हो गया। जंगलात कानून में कुछ सुधार कर जनता को सुविधाएं प्रदान की गई।
1921 में श्रीनगर में 'गढ़वाल नवयुवक सम्मेलन' नामक संगठन की स्थापना हुई। बहुगुणा जी संगठन के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। इसी वर्ष जिला कांग्रेस कमेटी, गढ़वाल के मंत्री चुने गए। 1930 में गढ़वाल में नमक-सत्याग्रह ने जोर पकड़ा। बहुगुणा जी ने इस आन्दोलन का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। धारा 144 का उल्लघन करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिए गए। फलस्वरूप 4 माह जेल की सजा हुई। 1931 में आप जिला बोर्ड के चैयरमेन चुने गए। इनके प्रयासों से हिमालय एयरवेज नाम की एक कम्पनी ने बद्री-केदार धाम आने वाले तीर्थ यात्रियों की सुविधा के लिए हरिद्वार से गौचर तक हवाई सर्विस शुरू की। 1934 में तत्कालीन वायसराय की पत्नी लेडी विलिंगटन विश्व विख्यात पत्रकार सन्त निहाल सिंह के साथ हवाई जहाज से गौचर उतरीं। गढ़वाल की ओर से बहुगुणा जी ने उनका स्वागत किया। 1937 में आप गढ़वाल से संयुक्त प्रान्त की विधान परिषद के सदस्य चुने गए।
1939 में आपने संयुक्त प्रान्त विधान परिषद में बद्रीनाथ मंदिर की कुव्यवस्था के विरुद्ध आवाज उठाई और श्री बद्रीनाथ मंदिर प्रबन्ध कानून पास करवाया। 1938 में पंडित नेहरू और श्रीमती विजय लक्ष्मी पण्डित 5 दिनों के भ्रमण पर गढ़वाल आए। स्वाधीनता के लिए बहुगुणा जी की भावनाओं को देखकर नेहरू जी बेहद प्रभावित हुए। अप्रैल 1940 में कर्णप्रयाग में राजनैतिक सम्मेलन में बहुगुणा जी सभापति चुने गए। व्यक्तिगत सत्याग्रह में 14 दिसम्बर 1941 को गिरफ्तार हुए और एक वर्ष कारावास की सजा पाई। जेल में ही आपका स्वास्थ्य खराब हो गया। 23, मार्च 1943 को आपका निधन हो गया।
अगस्त्य मुनि का डिग्री कालेज, नन्द प्रयाग का इन्टर कालेज, गौचर मेले के 'सिंह द्वार' का नामकरण इनके नाम पर है।
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