रानी धना, कुमाऊँ के अस्कोट रियासत के राजा नरसिंह की पत्नी थी। राजा नरसिह पूरे कुमाऊँ और काली पार तक अपना साम्राज्य स्थापित करने की मंशा बना रहा था। काली पार डोटी गांव पर भी नरसिंह की नजर थी। उस समय डोटी गांव में रैंका शासक कालीचंद का अधिकार था। कालीचंद रानी धना का ममेरा भाई लगता था। राजा नरसिंह ने जब रानी धना को काली पार डोटी गांव पर आक्रमण की अपनी योजना बताई तब रानी धना ने राजा को ऐसा करने से मना किया। रानी धना ने राजा को कालीचंद के साम्राज्य की शक्तियों का एहसास कराया और आक्रमण न करने की कई बार मिन्नतें भी की। राजा नरसिंह ने सोचा कि वो उसके मामा और मायके के सामने उसकी योग्यता को कम आंक रही है। राजा नरसिंह ने रानी को समझाया और अपनी और अपनी सेना की विजय गाथाओं का वर्णन करके रानी को आश्वस्त किया। राजा ने कहा वो डोटी गांव जाकर कालीचंद पर विजय करके ही लौटेगा।
जल्द ही वह समय आया जब राजा नरसिंह अपनी सेना लेकर डोटीं गांव पर आक्रमण के लिए निकला। वह तेज गति से सीमांत क्षेत्र में काली नदी के किनारे पहुँचा और लकड़ियों के सहारे काली नदी पार की। काली नदी पार कर वह तल्ला डोटी पहुँचा, अब वहां से धीरे धीरे उसने अपनी सेना के साथ मल्ली डोटी को कूच किया जहां कालीचंद का गढ़ था। मल्ली डोटी पहुंचकर उसने कालीचंद पर आक्रमण बोल दिया। युद्ध चला और कालीचंद की हार हुई। नरसिंह ने डोटी साम्राज्य पर आधिपत्य जमा लिया। राजा नरसिंह की शक्ति देखकर कालीचंद उस समय तो चुपचाप बैठ गया। राजा नरसिंह अब वापस अपने रियासत को लौटने लगा। धीरे-धीरे वह अपनी सेना के साथ मल्ला डोटी से चला। लम्बा युद्ध और पहाड़ी रास्तों के सफर की थकान से वह रुक-रुक कर आगे बढ़ रहा था। तल्ली डोटी तक पहुंचते पहुंचते वो काफी थक गया था और वहीं आराम करने के लिए रूक गया। कालीचंद को यही अवसर सही लगा। राजा और उसकी सेना को थकी अवस्था में ही पराजित किया जा सकता है। उसने मौका पाकर तल्ली डोटी पहुचकर राज नरसिंह पर हमला बोल दिया। फिर युद्ध चला। राज नरसिंह और उसकी सेना अब थकाई के कारण पस्त होने लगी। कालीचंद ने राजा को घेरकर धारदार हथियारों से उस पर हमला कर दिया। कालीचंद ने नरसिंह के दोनों हाथ काटकर उसे मौत के घाट उतार दिया।
उधर अस्कोट में जब राजा की मृत्यु का समाचार मिला तो रानी धना ने राजा की मृत्यु का बदला लेने और उनके पार्थिव शरीर को काली पार लाकर उनकी भूमि में पंचेश्वर नदी में सारे क्रियाकलापों के साथ अंतिम संस्कार कराने का निश्चय किया। अब चूंकि एक स्त्री को राज्य यह अनुमति नहीं देता सो वो राजा का राजसी बाना धारण कर पुरुष के वेश में सर पर पगड़ी बांधे और हूणदेशी घोड़े पर सवार होकर अपनी सेना लेकर मल्ला डोटी पर कूच करने निकल पड़ी। कालीचंद को इस आक्रमण की भनक लगती उससे पहले रानी धना उसके महल में पहुंच गयी। कालीचंद ने उस पर पलटवार किया। युद्ध करते हुए रानी धना की पगड़ी उतर गई। कहते है कि कालीचंद उसे देखता रह गया। और उस पर मंत्रमुग्ध हो गया। उसने पहले तो रानी को गिरफ्तार कराया और फिर उसको शादी का प्रस्ताव दे दिया। रानी ने कुछ सोचकर इस शर्त पर प्रस्ताव को हामी भर दी कि पहले राजा नरसिंह के शरीर को पंचेश्वर ले जाकर अंतिम संस्कार किया जाएगा। कालीचंद ने उसकी ये शर्त मान ली।
अब जैसे ही कालीचंद रानी धना और कुछ अपने सैनिकों के साथ काली नदी पहुंचा तो काली नदी को वेग देखकर सैनिकों ने उसे पार करने से मना कर दिया। रानी धना ने तब कालीचंद की तारीफ के पुल बांधकर उसे अपने साथ काली नदी पार करने के लिए उकसा दिया। कालीचंद तैयार हो गया। वे दोनों नदी को तुंबियों के सहारे पार करने लगे। रानी धना ने पहले ही कालीचंद से छुपकर उसकी तुबियों में छेद कर दिये थें जैसे जैसे वे नदी में आगे बढ़ने लगे कालीचंद नदी में डुबने लगा। उसने रानी धना को बचाने के लिए आवाज लगाई। रानी धना कालीचंद के पास आयी और मौका पाकर कालीचंद का सर धड़ से अलग कर दिया। और नरसिंह के शरीर के साथ काली पार करके पंचेश्वर पहुंची जहां राजा का अंतिम संस्कार करते हुए रानी धना भी सती हो गई।