बहुत पुरानी बात है, किसी गांव में एक किसान दम्पत्ति और उनकी इकलौती बेटी हुआ करती थी, जिसका विवाह उन्होने एक अन्य गांव में किया। विवाह को अब बहुत समय व्यतीत हो गया था, विवाह के बाद से बेटी मायका एक बार भी नहीं आई, जिस कारण किसान दम्पत्ति उदास रहने लगे।
ससुराल में बेटी के लिए सास का व्यवहार अच्छा नही रहता था। जिस कारण बेटी उदास व परेशान रहती थी। वह एकान्त में बैठी रोती रहती थी। वह अपने मां बाप को संदेश भेजना चाहती थी लेकिन वहां कोई ऐसा नहीं था जो उसकी मदद कर सके। वह दिन भर घर के, खेत के, जंगलों से घास-लकड़ी लाने के काम में लगी रहती। वह मन हल्का करने के लिए पेड़ पौधों, जानवरों से बात करती रहती। त्यौंहारों में भी जब गांव की बहु बेटियां मिलने जुलने अपने घर आती तो किसान दम्पत्ति भी अपनी बेटी की राह तकते लेकिन बेटी को अनुमति ही नहीं मिलती।
एक बार बेटी को पता चला कि उसकी मां बहुत बिमार है, उसे बहुत चिंता होने लगी वह अपनी मां से मिलना चाहत थी। उसने ये बात अपनी सास से कही और जाने की अनुमति मांगने लगी। सास ने उसे दैनिक कार्य के अलावा और काम भी करने को दे दिये और कहा जब यह कार्य हो जाये तो चली जाना।
आधा दिन बीत जाने के बाद भी काम पूरे न हो पाये। वह सास से आग्रह करने लगी। बहुत मिन्नत के बाद सास ने उसे जाने की अनुमति दे दी। वह भागी भागी मायके की ओर जाने लगी। शाम भी ढलने लगी थी। वह अपने कदम और तेज बढ़ाने लगी।
जैसे तैसे वह अपने मायके पहुंच गयी। उसने देखा, मां और पिता दोनों पहले से बहुत कमजोर हो गये है। उनकी ऐसी हालत देखकर उसका जी भर आया, अपना दुख भुलकर वो उनका हाल जानने लगी।
दोनों दम्पत्ति बिना कुछ बोले चुपचाप अपनी बेटी की ओर देखने लगे। वह अपनी बेटी को इतने लाड से रखते थे, उसकी ऐसी हालत देखके वो समझ गये थे कि ससुराल में उसे किस तरह रखा जाता था।
बेटी के आंसू निकल आये, उसने बिमार पड़ी मां को स्पर्श किया, पिता के गले लगी। बहुत देर जब उसके आंसू देखने के बाद भी जब मां पिता की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई तो वह उन्हे झिंझोड़ने लगी। - वे दोनों मर चुके थे।
कुछ दिन बाद उसी घर में एक बुरांश का पेड़ उग गया और उस पर बुरांश का फूल भी उग आया। अब वह हर त्यौहार में उस बुरांश के पेड़ से मिलने जाती थी। आज भी जब बुरांश खिलता है पहाड़ो में तो बहु बेटियां बुरांश से मिलने मायके जाती हैं। बुरांश को देखके वह उदास नहीं होती। हमेशा खुश रहती है।