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    अनासक्ति आश्रम कौसानी

    अल्मोड़ा के अन्तर्गत कौसानी भी एक ऐसा सौन्दर्य स्थल है जहां विश्व के कोने-कोने से प्रकृति प्रेमी लोग आकर अपनी सौन्दर्य-पिपासा शान्त करते हैं एवं शान्ति-लाभ करते हैं। यहाँ का सूर्योदय एवं सूर्यास्त तो दर्शनीय है ही, साथ ही 210 मील का विस्तृत हिमालय (गढ़वाल से नेपाल तक) अपने प्रमुख शिखरों, नीलकंठ, गौरी-पर्वत, कामेट, हाथी-पर्वत, नन्दाघुटी, त्रिशूल, नन्दादेवी, नन्दाकोट, पंचचूली और अप्पी तथा नम्पा आदि से युक्त भारत की उत्तरी सीमा पर अचल प्रहरी के समान खड़ा हुआ विश्व भर के मानवों को आकर्षित कर रहा है। यह दर्शन इतने निकट से अन्यत्र दुर्लभ हैं।


    यहाँ एक शान्त-एकान्त, प्राकृतिक-परिवेश, आध्यात्मिक-प्रेमियों को विशेष आकृष्ट करता रहा है। गहन विषयों एवं तत्वों के चिन्तन-मनन के लिये यह स्थान अनुकूल है।


    विश्ववंद्य बापू ने भी 1929 ई. के जून मास में इसी कौसानी में कुछ दिवस (12 दिवस) निवास कर अपनी प्रसिद्ध-पुस्तक "अनासक्ति-योग" की भूमिका लिखी थी और अपने गीता-सम्बन्धी विचार प्रकट कर संसार के समक्ष अपने "अनासक्त-विचार" रखे थे।


    यहाँ का थोड़े दिन का निवास बापू के लिए बड़ा ही आनन्दमयी रहा। यहाँ की प्राकृतिक छटा ने उन्हें विमोहित कर लिया। हिम-शिखरों को देखकर आत्मविभोर हए। यहाँ की स्वास्थ्य-प्रदायिनी वायु और यहाँ के जल की उन्होंने बड़ी प्रशंसा की। कौसानी को उन्होंने "भारत का स्विटजरलैण्ड" कहा। 11 जुलाई 1929 ई. के "यंग-इंडिया" के अंक में उन्होंने लिखा -"हिमालय की स्वास्थ्य-वर्द्धक-जलवायु, उसका मनोहर दृश्य, चारों तरफ फैली हुई सुहावनी हरियाली, यहाँ आपकी किसी भी अभिलाषा को अपूर्ण नहीं रखती। मैं सोचता हूँ कि इन पर्वतों के दृश्यों तथा जलवायु से बढ़कर होना तो दूर रहा, इनकी बराबरी भी संसार का कोई अन्य स्थान नहीं कर सकता। इन पर्वतों में तीन सप्ताह रहकर मुझे अब तो पहले से भी अधिक आश्चर्य होता है कि हमारे देशवासी स्वास्थ्य लाभ के लिए क्यों योरोप की यात्रा करते होंगे।"


    बापू के इस लेख से संसार के लोगों का आकर्षित हुआ और कौसानी की प्रसिद्धि बढ़ी।


    बापू जी के निवास से तो और निवास से तो कौसानी की महिमा बढ़ी ही किन्तु कविवर प.सुमित्रानन्दन पन्त की जन्मस्थली होने के कारण भी कौसानी साहित्यकारों का तीर्थ माना जाता है।


    गांधी जी के कार्यों को अग्रसर करने एवं उनकी स्मृति बनाये रखने के हेत उनके अनुयायियों ने "गांधी-स्मारक-निधि" के नाम से एक कोष इकट्ठा किया जिसके द्वारा देश-विदेश में गांधी-साहित्य एवं विचार-प्रचार का कार्य हुआ।


    गांधी जी के कौसानी-निवास की स्मृति को बनाये रखने के लिए उत्तर-प्रदेश गांधी-स्मारक निधि के अध्यक्ष श्री विचित्र नारायण शर्मा, तथा मंत्री श्री अक्षय कुमार 'करण' के प्रयत्नों एवं "लक्ष्मी-आश्रम" कौसानी की संस्थापिका सुश्री सरला बहन (गांधी जी की अंग्रेज शिष्या) की प्रेरणा से श्रीमती सचेता कृपलानी के मुख्य-मंत्री काल में, उन्हीं के द्वारा 6 अक्तूबर, 1964 ई० में "अनासक्ति आश्रम" का उद्घाटन समारोह हुआ।


    जिला परिषद का डाक बंगला (जहाँ बापू ने 1929 ई० जून में 12 दिवस निवास कर अनासक्ति-योग की भूमिका लिखी थी) श्री गोवर्द्धन तिवारी, तत्कालीन अध्यक्ष, जिला-बोर्ड द्वारा हस्तान्तरित होकर "अनासक्ति-आश्रम" में परिणित हो गया।


    "अनासक्ति-आश्रम" की स्थापना में, बापू को "अनासक्ति-योग" लिखने की प्रेरणा देने वाले, श्री स्वामी आनन्द जी का भी विशेष योग रहा है। कौसानी स्वामी जी को विशेष प्रिय था और वे वर्षों यहाँ रहे हैं। अल्मोड़ा के प्रमुख गांधी-भक्तों का इस कार्य में पूरा सहयोग रहा है।


    श्री शान्तिलाल त्रिवेदी, जो इस क्षेत्र के जन-जागरण में प्रमुख रहे हैं, और जिनका गांधी जी व उनके कार्यों से निकट सम्पर्क रहा है तथा गोवर्धन तिवारी का भी इस आश्रम की स्थापना में सहयोग प्राप्त हुआ।


    गांधी जी का कौसानी आगमन एक ऐतिहासिक घटना हुई और जैसा कि श्री नेहरू ने कहा था कि -- "जहाँ बापू के चरण पड़ते थे, वह स्थान जाता था और जहाँ उनका निवास होता था वह तीर्थ सदृश हो जाता था" -- कौशानी वास्तव हिमालय का एक तीर्थ ही बन गया। "यह तीर्थ मिट्टी ईंट और गारे का नहीं अपितु साधना की ईंट और विचार के गारे से निर्मित है।" 24 जून, 1929 ई. को गांधी जी ने यहाँ बैठकर "अनासक्ति-योग" की भूमिका लिखी थी है। अनासक्त कौन है? जो आसक्ति और अहंकार रहित है, जिसमें दृढ़ता और उत्साह है, जो सफलता और विफलता में हर्ष-शोक नहीं करता वही अनासक्त है।"


    आश्रम की स्थापना के बाद सुश्री सरला बहिन और श्री करण भाई के आमंत्रण पर बड़ौदा के श्री जीवाभाई पटेल के आगमन से इस आश्रम के विकास में काफी सहायता मिली और आश्रम का वर्तमान रूप प्रगट हुआ।


    अनासक्ति-आश्रम की स्थापना-दिवस के दिन श्रीमती सुचेता कृपलानी ने अपने उद्घाटन भाषण में आश्रम का उद्देश्य बतलाते हुए कहा था कि "यह साधना-केन्द्र बनेगा, यहाँ साधक आयेंगे, रहेंगे, पढ़ेंगे, अध्ययन करेंगे और दूसरों को शिक्षा देंगे। गांधी जी की शिक्षा पाने के लिए जिनके दिल में भूख है, जो कुछ समझना चाहते हैं, वे यहाँ आयेंगे। केवल भारत के ही नहीं -- विश्व के लोग -- यह एक विश्व-केन्द्र होगा जहाँ संतप्त, निराश लोग, जो आज चारों तरफ जर्जरित होकर मानव-जाति के लिए शान्ति लाने के अनुसंधान में है, वह यहाँ अवश्य आयेंगे। महात्मा गांधी की फिलासफी के गंगाजल का आचमन करने के लिए लोग दूर-दूर से आयेंगे।"


    वास्तव में हिमालय की गोद प्राचीन काल से ही शान्तिदायिनी रही है और यहाँ आकर सभी को मानसिक-आनन्द मिलता है। आज भी हम देखते हैं कि बड़े शहरों के कोलाहलपूर्ण वातावरण से त्रस्त होकर आने वाले लोग यहाँ थोड़ा विश्राम और मानसिक शान्ति अवश्य पाते हैं।


    हिमालय-दर्शन को आने वाले लोग अनासक्ति-आश्रम में भी आते है और प्राकृतिक सौन्दर्य एवं शान्ति से भरपूर आश्रम के वातावरण से प्रभावित होते हैं।


    कौसानी अभी इतना विकसित नहीं हुआ है जहाँ बाहर से आने वालों को पर्याप्त सुविधा प्राप्त हो सके। कुछ सरकारी डाक बंगलों में खाली होने पर ही आरक्षण मिल सकता है। सार्वजनिक निवास की सुविधा साधारणतया यहाँ उपलब्ध नहीं है।


    अनासक्ति-आश्रम में यहाँ के नियम के अनुसार सात्विक-निदास एवं भोजन की व्यवस्था है। जो व्यक्ति सात्विक वृत्ति से आश्रम के नियमानुसार निवास चाहते है उन्हें सम्पर्क करना आवश्यक है। आश्रम जनाधारित है और पब्लिक की ओर से मिलने वाली दान-रूप सहायता से ही आश्रम चलता है। अभी आश्रम इस स्थिति में नहीं है कि सभी आगन्तुकों को निवास आदि की समुचित सुविधा कर सके। किन्तु हमारे देश की पवित्र परम्परा किसी भी जनहित कार्य में सात्विक सहायता प्रदान करने की रही है। उसी के बल पर हमें विश्वास है, कि बापू की चरण रज से पावन यह आश्रम निरन्तर इस स्थान की पवित्रता बनाये इस रखकर प्रगति की ओर अग्रसर होता रहेगा और विश्व के लोगों को अपनी और आकर्षित करेगा।

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