भानदेव की गर्भवती पत्नी कोंशिला ने स्वप्न में पाताल लोक के राजा कालीनाग के बगीचे में नारंगी का अद़भुत पेड़ देखा और जागने पर पति से वह फल खाने की इच्छा प्रकट की। कई दिनों की यात्रा के बाद भानदेव पाताल लोक पहुंचा तो कालीनाग ने इस शर्त पर फल दिया कि यदि भानदेव की पुत्री हुई तो उसका ब्याह कालीनाग से करना होगा। भानदेव की अत्यन्त सुंदर कन्या उत्पन्न हुई। गोरिघना नामक इस कन्या का बारहवें वर्ष में कालीनाग के साथ ब्याह रचाया गया। उसके बाद भानदेव का सचदेव नामक पुत्र हुआ।
दुर्गम और दीर्ध मार्गों के कारण गोरिघना विवाह के बाद मायके न आ सकी। बारह वर्ष के सचदेव को गोरिघना की बातें मालूम हुई तो वह बारह वर्षो की भेंट लेकर कई दिनों की लम्बी यात्रा कर बहन से मिलने नागलोक पहुंचा। भाई-बहन जी भर कर गले मिले और रोते रहे। इस मिलन से कालीनाग की बहन भागा को जलन हुई। भाई गोरिघना को माइके लिवा ले जा रहा था तो भागा ने अपने भाई से कहा कि वह उसका भाई नहीं लगता, अवश्य कोई प्रेमी होगा। बहन की बात सच मानकर कालीनाग क्रोघ में फुफकारता हुआ दौड़ा और सचदेव पर पापपूर्ण वाणी में आक्षेप किया। इस आधात को न सह पाकर सचदेव ने वहीं पर पत्थर से अपनी जीभ काट कर आत्महत्या कर ली। वस्तुस्थिति का पता लगने पर कालीनाग ने भी आत्महत्या कर ली और गोरिघना ने भी अपना जीवन व्यर्थ समझकर वही मार्ग अपनाया! कथा के अनुसार इस दुखान्त धटना के बाद से हर वर्ष चैत्र मास में लड़की को माइके की ओर से भिटौली दी जाती है।