Folklore


    गोलू देवता - गोल्ज्यू की लोक कथा

    Goludev चम्पावत में कत्यूरी राजा झालराव (झालुराई) का राज था। राजा की सात  रानियां थी। कहा जाता है कि राजा निःसंतान थें जिस कारण उन्हें यह बात हमेशा चिंता में डाले रहती थी। समय बितता चला गया किन्तु राजा को रानियों से कोई भी संतान प्राप्त न हुई। यह भी कहा जाता है कि निःसन्तान राजा ने भगवान भैरव की तपस्या कर उन्हे प्रसन्न किया, इस पर भैरव ने उन्हे यह वरदान दिया कि वह स्वयं राजा के घर जन्म लेंगें। जिसके लिए उन्हें आंठवा विवाह करना होगा।

    एक बार की बात है  राजा काली नदी के किनारे शिकार खेलने गये। शिकार में कुछ न मिलने पर वह आगे बढ़े, कुछ दूर चलने पर वह दूबाचौड़ गांव पहुँचे। राजा प्यासे थे तो अपने सेवक को पानी लाने भेजा। राजा थकान मिटाने बैठे ही थे कि उनकी नजर दो लड़ते हुए भैंसो पर गई। राजा ने उन्हे अलग करने का प्रयास किया परन्तु हर कोशिश में असफल रहें। उधर उनका सेवक कुछ दूरी पर एक आश्रम में पहुंचा जहां उसे पानी मिला। सेवक ने वहीं एक स्त्री को तपस्या करते देखा, पानी ले जाने की अनुमति मांगने हेतु सेवक ने स्त्री की तपस्या भंग कर दी। इस पर स्त्री ने क्रोध में आ कर कहा कि जो राजा दो लड़ते हुए भैंसो को छुड़ा न सका उसके सेवकों से और उम्मीद भी क्या की जाए। सेवक को अंचभा हुआ और वह स्त्री को राजा के पास ले गया जहां उस स्त्री ने उन भैंसो को अलग किया । स्त्री के साहस और सौंदर्य देखकर राजा उन पर मंत्रमुग्ध हो गये। (कहीं कहीं जनश्रुतियों के अनुसार यह कथा भी है- सेवक जब पानी की तलाश में गये और काफी देर तक न लौटे तो राजा उनकी तलाश में एक तालाब के किनारे पहुचे जहाँ उन्हें सिपाही मूर्छित पड़े मिले। राजा यह देखकर चौंके और जैसे ही पानी पिने वाले थे उनको एक स्त्री की आवाज सुनाई दी कि रुकजाओ!, इन सभी ने भी यही गलती की थी। यह तालाब मेरा है और मेरी आज्ञा के बिना तुम पानी नहीं ले सकते हो। राजा ने बताया की वह इस राज्य के राजा झालुराई हैं। इस पर स्त्री ने झालुराई को यह साबित करने को कहा कि वह राजा हैं। इस पर झोलु राई ने कहा की आप ही बताएं कि आपको अपने राजा होने का क्या प्रमाण दूँ। स्त्री ने पास में ही आपस में लड़ते हुए दो भैंसों को देखा और कहा की आप इनको अलग कर सकते हो, मैं मान जाऊंगी की आप ही राजा झोलुराई हैं। राजा ने काफी प्रयास किये पर सफल न हो सके। यह देख कलिंगा ने स्वयं उन दो भैंसों को अलगकर उनकी लड़ाई समाप्त करवा दी।) 

    राजा ने स्त्री से उसका परिचय पूछा तो स्त्री ने बताया कि वह पंच देवताओं की बहन कलिंगा हैं। राजा ने कलिंगा को अपनी आंठवी रानी के रूप में चुना और वह राजा एक दिन पंच देवताओं के पास जाकर कलिंगा का हाथ मांगने गये तो पंच देवताओं ने दोनों के विवाह के लिए हामी भर दी। तदुपरांत दोनों का विवाह भी हो गया। बाकि की सातों रानियों को कलिंगा का राजा के ज्यादा समीप होना पसंद न आता था।

    समय बढ़ता गया और वह दिन भी आया जब रानी गर्भवती भी हुई। राजा की खुशी का अब कोई ठिकाना न रहा और वह दिन भी आया जब रानी ने एक राजकुमार को जन्म दिया। लेकिन ईर्ष्या से भरी रानियों ने छल से उस नवजात के स्थान पर एक सिलबट्टा रख दिया। और रानियों ने विभिन्न प्रयासों से नवजात को मारना चाहा परन्तु असफल रहीं, जब उन्हे कुछ नहीं सूझा तो उन्होने उस नवजात को बक्से में बंद करके नदी में फेंक दिया। जब रानी कलिंगा को होश आया तो उसको बताया कि तूने तो सिलबट्टे को जन्म दिया है। राजा को भी यही बताया गया।

    उधर बक्से में बंद राजकुमार नदी में बहते-बहते आगे जाकर एक मछुवारे दम्पति को मिले। मछुवारे ने बक्सा खोल के देखा तो उसमें नवजात को देखकर हैरान हुआ। चूंकि मछुवारा भी निःस्तान था सो वह उस नवजात राजकुमार को अपने साथ ले गया। वक्त का पहिया घूमता रहा और कुछ समय पश्चात जब वह राजकुमार बड़ा हुआ तो कहा जाता है कि बालक को अपनी शक्तियों का बोध हुआ और एक दिन बालक ने पिता से कहा कि उसे चंपावत जाना है उसे एक घोड़ा चाहिए। मछुवारा गरीब था और बच्चे की जिद देखकर उसे एक काठ(लकड़ी) का घोड़ा ला दिया। बालक उसी को लेकर चपांवत पहुंच गया। बालक ने देखा कि वहीं सातों रानियां नदी किनारे आई है। बालक उनके समीप जाकर अपने काठ(लकड़ी) के घोड़े को नदी से पानी पीने का आदेश देने लगा तो वह सभी रानियां हंसने लगी और बालक से कहने लगी कि क्या काठ का घोड़ा भी कभी पानी पीता है? तो वह बालक बोला कि जब एक स्त्री सिलबट्टे को जन्म दे सकती है तो काठ का घोड़ा भी पानी पी सकता है। इस पर सभी रानीयां घबरा गई कि इस बालक को यह बात कैसे पता चली। नदी किनारे आये अन्य लोगो के माध्यम से यह बात जब राजा के कानों में पड़ी तो उन्होने उस बालक को दरबार में बुलाया तब बालक ने रानियों द्वारा किये गये सारे छल के बारे में राजा को बताया और भैरव द्वारा दिये गये वरदान को राजा को याद दिलाया जो सिर्फ राजा ही जानता था। बालक की बातें सुनकर राजा को रानियों के कृत्य पर क्रोध आया और रानियों को सजा सुनाई गई। सातों रानियों के क्षमा याचना करने पर बालक गोलू ने राजा से उन्हे क्षमा करने को कहा।

    आगे चलकर राजा झालराव के बाद यहीं बालक राज्य का राजा बना और अपने न्याय करने की कला से अपने राज्य में घर-घर में पूजा जाने लगा। जब धीरे-धीरे उनके न्याय की खबरें सब जगह फैलने लगी तो वह पूरे कुमाऊँ में पूजे जाने लागे। यही बालक आगे चलकर विभिन्न नामों- गोलूदेवता, ग्वालमहाराज, बालागोरिया, गौरभैरव(शिव) इत्यादि नामों से प्रसिद्ध हुए। श्रद्धालु, भक्त आज भी जब उन्हे न्याय की आवश्यकता होती है तो गोलू देवता के पास आते है उनके मंदिरों में चिट्ठियों के माध्यम से अपनी मुरादें मानते है। 

    अल्मोड़ा के समीप चितई, घोड़ाखाल और चंपावत में गोलू देव के प्रसिद्ध मंदिर है। इनके अलावा भी कुमाऊँ अंचल के कई स्थानों में गोलू देवता के प्रसिद्ध मंदिर है।

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