Folklore


    चल तुमड़ी बाटुं - बाट

    एक गाँव में रामी नाम की बुढ़िया और उसकी बेटी रहती थी। बुढ़िया ने अपनी बेटी की शादी दूर एक दूसरे गाँव में कर दी। बहुत दिन बीत गए बुढ़िया को अपनी बेटी की याद सताने लगी और उसने मन बनाया की कल सुबह वो अपनी बेटी से मिलने जायेगी। बुढ़िया ने रात को ही सब इंतेज़ाम कर लिए, बेटी के लिए एक कटोरा च्यूड़, सियल, खजूर और पूए बना एक छोटी सी पोटली बाध दी। सुबह बुढ़िया पोटली सर में रख निकल पढ़ी अपनी बेटी के ससुराल। बुढ़िया को चलते-चलते साम हो गयी, बेटी के ससुराल जाने के रास्ते में एक खतरनाक जंगल पढ़ता था। जंगल में उसे खूंखार जानवरों की आवाजें आने लगी। वो थोड़ा चली ही थी की अचानक उसके सामने एक मोटा काला भालू आ गया। भालू बुढ़िया को खाने के लिए उसके तरफ बड़ा पर बुढ़िया ने हिम्मत बाधी और उसने हाथ जोड़ के कहा।

    चेलिक यां जूँल, (बेटी के वहा जाऊंगी)

    दूध मलाई खूँल, (दूध मलाई खाऊँगी)

    खूब मोटै बेर ऊँल (खूब मोटी हो के आऊँगी)

    तब तु मैंकैं खै लिये (तब तू मुझे खा लेना)

    भालू ने उसकी बात मान ली। आगे जाते जाते बुढ़िया को बाघ, सियार और दूसरे जानवर मिले जो उसे खाना चाहते थे पर बुढ़िया ने सभी को यही आश्वासन दिया की वो बेटी के वहा से खूब खा के मोटी होके आयेगी तब उसे खा लेना। जैसे तैसे बुढ़िया अपनी जान बचा के बेटी के ससुराल पहुँची।

    रात भर माँ बेटी ने खूब बात करि, बुढ़िया ने गाँव, पड़ोसियों का हाल चाल अपनी बेटी को बताया। महीना भर बेटी के घर रह के बुढ़िया अब अपने घर वापिस जाने की सोचने लगी। वापसी की तैयारी करते-करते बुढ़िया उदाश हो गयी, उसे उन जंगली जानवरों का डर सताने लगा जो उसे रस्ते में फिर मिलने वाले थे।

    बुढ़िया को उदाश देख बेटी ने उदासी का कारण पूछा, अन्ततः बुढ़िया ने अपने बेटी को सारी आपबीती सुना दी। बुढ़िया की बेटी बहुत चालाक थी उसने अपनी सास से थोड़ा बहुत जादू सीखा था। बेटी ने एक बड़ी सी तुमड़ी (सूखी हुई खोखली गोल लौकी) बनाई, थोड़ी पूरी पूए पोटली में बाध बुढ़िया को तुमड़ी में बैठा के उसके कान में कुछ मन्त्र बोले।

    मन्त्र बोलते ही तुमड़ी रस्ते में चलने लगी। जंगल में पहुँच के बुढ़िया को सबसे पहले बाग़ मिला! बाग़ ने कहा - ओ तुमड़ी क्या तूने कही वो बुढ़िया को देखा जो यहाँ के रास्ते से अपनी बेटी के वहा जा के मोटि हो के आने वाली थी?

    तुमड़ी के अंदर बैठी बुढ़िया ने कहा -

    चल तुमड़ी बाटुं-बाट, (चल तुमड़ी अपने रास्ते)

    मैं कि जाणुं बुढियै बात।  (में क्या जानू बुढ़िया की बात)

    और तुमड़ी चल दी।

    ऐसे ही भालू मिला और भी जानवर मिले, बुढ़िया तुमड़ी के अंदर से सबसे यही कहती रही।

    चल तुमड़ी अपने रास्ते,

    में क्या जानू बुढ़िया की बात।

    हर बार यही जवाब मिलने पर जानवरों को गुस्सा आ गया और उन्होने तुमडी को तोड दिया। रामी को देखकर उनमें उसे खाने की होड लग गयी और वो आपस में ही लडने लगे। मौका देख कर रामी एक पेड पर जा कर बैठ गयी। जानवर नीचे बैठकर उसके नीचे आने का इन्तजार करने लगे। रामी को अपनी बेटी की बतायी हुई बात याद आ गयी वो जोर से आवाज लगा कर बोली- “मेरे नीचे गिरने पर जो सबसे पहले मुझ पर झपटेगा वो ही मुझे खायेगा”। सभी जानवर टकटकी लगा कर उपर देखने लगे। बुढिया ने पोटली से मिर्च निकाल कर उनकी आखों में झोंक दी। जानवर तडप कर इधर-उधर भाग गये और रामी पेड से उतर कर अपने घर चली गयी। रामी की समझदारी ने उसकी जान बचा ली।

    Leave A Comment ?

    Popular Articles

    Also Know