Folk Songs


    बुरांश- सुमित्रानंदन पन्त

    सुमित्रानंदन पन्त जी की अपनी दुदबोली कुमाऊंनी में एक मात्र कविता है।



    सार जंगल में त्वि ज क्वे न्हां रे क्वे न्हां,
    फुलन छै के बुरूंश ! जंगल जस जलि जां।

    सल्ल छ, दयार छ, पई अयांर छ,
    सबनाक फाडन में पुडनक भार छ,
    पै त्वि में दिलैकि आग, त्वि में छ ज्वानिक फाग,
    रगन में नयी ल्वै छ प्यारक खुमार छ।

    सारि दुनि में मेरी सू ज, लै क्वे न्हां,
    मेरि सू कैं रे त्योर फूल जै अत्ती माँ।

    काफल कुसुम्यारु छ, आरु छ, आँखोड़ छ,
    हिसालु, किलमोड़ त पिहल सुनुक तोड़ छ,
    पै त्वि में जीवन छ, मस्ती छ, पागलपन छ,
    फूलि बुंरुश! त्योर जंगल में को जोड़ छ?

    सार जंगल में त्वि ज क्वे न्हां रे क्वे न्हां,
    मेरि सू कैं रे त्योर फुलनक म' सुंहा॥

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