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    तिखौन कोट

    tikhonkot

    जनपद मुख्यालय अल्मोड़ा से लगभग 35 किमी. अल्मोड़ा द्वाराहाट भाया गोविन्दपुर से कोरीछीना तक छोटे अथवा बड़े वाहन से यात्रा की जा सकती है। कोरीछीना से मजखाली मुख्य सड़क मार्ग के मध्य हनुमान मंदिर तक लगभग 2.5 किमी. किसी वाहन से अथवा पैदल यात्रा की जा सकती है। कोरीछीना से छोटे अथवा बड़े वाहन कम ही मिलते है, अथवा निजी वाहन से यात्रा की जा सकती है। अतः मुख्य सड़क मार्ग में ही हनुमान मंदिर का मुख्य द्वार निर्मित किया गया है। इस स्थल से लगभग 700 मी. की ऊँचाई में "कोट की माई" / "तिखौनकोट" अथवा "हनुमान मंदिर" विद्यमान है।
    तिखौन कोट ग्राम तिखौन पट्टी व पोस्ट मजखाली तहसील रानीखेत के अन्तर्गत स्थित है। तिखौन कोट एक ऊँची पहाड़ी टीले में निर्मित है। यह टीला पूर्वी व पश्चिमी भाग में प्रकृति प्रदत है। जबकि उत्तर दक्षिण भाग में मानव द्वारा निर्मित है। वर्तमान समय में क्षेत्रीय जनता ने हनुमान मंदिर मुख्य टीले में बनाया है। यह आधुनिक मंदिर पूर्वाभिमुख है, मंदिर के गर्भगृह में हनुमान जी की आधुनिक प्रतिमा रखी गयी है। यह टीला नारियल आकारित है अर्थात इसका उत्तरी भाग चौड़ा और पश्चिमी भाग नारियल की तरह संकुचित है। यह टीला लगभग 16 ल. × 10 चौ. मीटर माप का है। उत्तरी पार्श्व से मुख्य रास्ता है। टीले के चारों ओर से लगभग 2.5 फुट की चाहरदीवारी दी गयी है जिसमें वर्तमान समय में स्थानीय ग्रामीणों द्वारा रैलिंग लगवायी गयी है। इस स्थल से यदि कोई भी व्यक्ति गिर गया तो वह लगभग 250 से 500 मीटर की दूरी से पहले नहीं रूक पायेगा। अर्थात यह स्थल इतना ढलवी आकरित भूमि में विद्यमान है कि कोई चाह कर भी नहीं रूक सकता।


    मुख्य टीले के उत्तरी पार्श्व में लगभग 100 मी. की गहराई में दूसरा टीला विद्यमान है। जिसमें दो आवासीय भवन की नींव आज भी अपना बखान कर रही है। वर्तमान समय में इनमें बरसात के समय पानी भरा रहता है। इस परिसर में मकान के प्रांगण हेतु तीन ओर से जो प्रतिधारक दीवार दी गयी है यह 1 मी. से 1.5 मी. तक निर्मित है। इस स्थल का पूर्वी भाग लगभग 100 मी. चट्टान को तलाश कर बनाया गया है। इससे लगभग 50 मी. की दूरी में लगभग 15×2×1 मी. (ल.×चौ. ×ऊ) माप के चट्टान को तराश कर बनाया गया है।

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    कोट के लिए एक मात्र रास्ता


    कोट के पूर्वी भाग में प्रकृति प्रदत्त एक सीधी चट्टान है। इस कोट में एक मात्र ही आम रास्ता बना है इसके अतिरिक्त और कोई भी रास्ता नहीं है। यह भाग पूर्णतः सपाट है। अर्थात लगभग 1 किमी. गहरा है या यों कहा जा सकता है कि इस टीले के पश्चिमी भाग में एक मात्र रास्ता बनवाया गया है। वर्तमान समय में स्थानीय जनता इसी रास्ते का प्रयोग करती है।


    इस कोट के दक्षिणी पार्श्व में लगभग 15 मी. की गहराई में दूसरा कोट विद्यमान है। जिसकी ल×चौ×ऊ (15×12×5 मी.) लगभग गोलाई में है। इसे गोलाई में लेने हेतु चार जगह लगभग 1 मी. ऊँची प्रतिधारक दीवार का भी निर्माण किया गया है। इस टीले के दक्षिण दिशा में लगभग 25 मी. की दूरी पर गहराई में एक सुरंग है। यह सुरंग वर्तमान समय में लगभग बंद हो चुकी है। यह कहा जा सकता है कि मिट्टी पत्थर आदि मलवे से दब चुकी है। वर्तमान समय में इस सुरंग का केवल प्रवेश द्वार लगभग .66×.89सेमी. (ल. × चौ.) और अन्दर भाग लगभग 2.5×1.5×1 मी. (ऊ×ल×चौ) है। शेष नीचे का भाग दब चुका है। इस सुरंग का अंतिम छोर कहां पर है यह कितनी लम्बी है और प्रकाश हेतु कितने जाल (खिड़किया) है यह स्पष्ट नहीं है। स्थानीय जनता से भी इस कोट में विद्यमान सुरंग के बारे में जानकारी लेने की कोशिश की गयी परन्तु किसी को भी इसके बारे में ज्ञात नहीं था। इसी टीले से जुड़ा तीसरा टीला भी है। दूसरें टीले से यह टीला लगभग 200मी. की गहराई में है। इस टीले को एक बड़े चट्टान को तराशकर और इसके लिए लगभग 15×2×3 मी.(ल.×चौ. ×ग) मोर्चाबन्दी हेतु खाई बनायी गयी है।


    तीसरा टीला लगभग मुख्य टीले के दूसरे टीले से लगभग 100 मी. की गहराई में प्रतीत होता है। यह टीला लगभग 10×8×6 (ल×चौ×ऊ)। इसके भी तीन ओर से मोर्चाबन्दी हेतु चट्टान को तराशकर बनाया गया है। जबकि वर्तमान समय में कुछ स्थानीय लोगों द्वारा चट्टान को काटकर पत्थर भी निकालने की वजह से ढ़ाचे को कुरूप कर दिया गया है।


    इस टीले में कुल तीन कोट है जो सिरे से एक दूसरे में जुड़े है। संभवतः इन तीनों कोटों के नाम से तिखौन (तीन खाने जो अलग अलग बने है) कोट नाम पड़ा हो। स्थानीय लोगों ने अवगत कराया कि तीसरे वाले टीले से सड़क निर्माण हेतु पत्थर निकालने से स्थल को कुरूप करने का उद्देश्य यह था कि जो भी गलत कार्य करता था उसे टीले में फांसी देकर राजा उसकी इहलीला समाप्त करवा देता था। इसलिए इस टीले को स्थानीय जनता ने मिलकर इसे इतना कुरूप कर दिया कि कोई यह न समझे कि यहां पर हमारे पूर्वजों की हत्या करवा दी गयी थी। स्थल को देखकर तो आभास होता है कि अवश्य ही इस स्थल में फांसी दी जाती होगी। इस टीले को फांसी ठौर भी कहते हैं।


    तिखौन कोट के सम्बन्ध में अल्मोड़ा निवासी श्री बद्री दत्त पांडे जी ने कुमाऊ के इतिहास में (पृ. 89-90) लिखा है कि ‘‘तिखौन का राजा तिखौनी था। उसका किला तिखौन एक ऊँची चोटी पर था। चन्दों के अल्मोड़ा क्षेत्र में हस्तक्षेप होने के पश्चात वह मारा गया‘‘। तिखौन कोट चन्दों के अधिकार क्षेत्र में आ गया। एक लोक कहावत भी प्रचलित है कि एक बार तिखौन काट में रणखिल गांव के एक प्रहरी का अधिकार हो गया, उसने कुछ फौज एकत्र कर अपने को तिखौन का राजा घोषित कर दिया। चन्दों की थोड़ी सी सेना तिखौन कोट में हमला करने गयी, परन्तु लड़ाई में हारकर वापस लौट गई। कुमाऊ के इतिहास में यह भी उल्लेख मिलता है कि ‘‘जब चन्द राजा की सेना एक छोटे से माण्डलीक राजा से परास्त हो गयी तब पणकोट गांव के चिल्वाल लोगों ने चन्द लोगों से आज्ञा लेकर उस माण्डलिक अथवा प्रहरा राजा से युद्ध किया। चिल्वाल लोगो ने प्रहरी की फौज का पानी ही बन्द कर दिया। बिना पानी के प्रहरी की सेना तंग हो चुकी थी। अतः चिल्वालों ने प्रहरी को मार डाला और यह चन्दों के अधिकार में फिर आ गया‘‘। श्री बद्री दत्त पांडे जी यह भी लिखते है कि पानी बन्द करने की कहानी इस प्रकार कही जाती है कि चिल्वालों का नेता थककर जमीन पर सोया तो उसने पानी बहने की जैसी आवाज सुनी। पुनः ध्यान लगाकर पूर्णतः जानने की कोशिश की गयी। अन्त में उसने उस क्षेत्र को खोदकर देखा तो नीचे पानी की नाली निकली थी। अतएव वह पानी की नाली तोड़ दी गयी। इस बहादुरी व खैरख्वाह के बदले चन्द राजा ने चिल्वालों को तिखौन पट्टी में कमीनचारी का पद दिया। जो अंग्रेजों के बाद ही छूटा। (कु. इ. पृ 90) जबकि एडविन टी. एटकिंसन के हिमालियन गजेटियर के अनुवादक श्री प्रकाश थपलियाल ने हिमालियन गजेटियर के भाग दो पृ. सं. 694 में कहा है कि बारामण्डल परगने की एक पट्टी जिसे तिखौन कहते हैं, को हाल बन्दोबस्त में दो पट्टियों मल्ला व तल्ला में बांट दिया गया। मल्ला तिखौन में विद्यमान तिखौन कोट में पुराने समय में एक खसिया राजा का राज्य था। तिखौन कोट के सम्बन्ध में यह कहा जाता है कि यह कोट पूर्व में अवश्य ही कत्यूरी राजाओं का महत्वपूर्ण कोट रहा होगा। चूंकि कत्यूरी राजा ने ही अपने इस कोट को छोटे सामन्त के अधिकार में इस क्षेत्र की जनता और उनकी सेवा, सुरक्षा और लगान वसूली के लिए प्रतिनिधि रखा होगा। वह भी अन्य राजाओं की तरह सोलहवीं शताब्दी में चन्दों से पराजित हुआ। चन्द राज वंश में कई राजाओं ने तिखौन गांव की बहुत भूमि दान में दी थी। ताम्रपत्रों में कई राजाओं ने भूमि दान किया है। लेखक द्वारा हाल ही में दो ताम्रपत्र प्रकाश में लाये गये। यह ताम्रपत्र अल्मोड़ा निवासी श्री नवीन चन्द्र पाण्डे जी के पास सुरक्षित है। जिसमें मुख्यतः चन्द राजा दिलीप चन्द द्वारा शक संवत् 1544 वैशाख शुक्ल पक्ष 5 गते शुक्रवार को श्री नारायण पाण्डे एवं जयदेव पाण्डे को तिखौन में एक ज्यूला और 12 वी.सी. राजा त्रिमल्ल चन्द द्वारा शक संवत 1550 के आश्विन मास के शुक्ल पक्ष के सोमवार को श्री लल्लन पंत को तिखौन माज बसी गाड़ में 6 बीसी जमीन और राजा कल्यान चन्द ने शक संवत 1659 असौज कृष्ण पक्ष 4 गते को श्री अनूप तड़ागी को तिखौन गांव 11 वीसी गयेरा हाल दिया गया। राजा कल्यान चन्द का उल्लेख डा. राम सिंह जी ने अपनी पुस्तक रागभाग काली कुमाऊँ के पृष्ठ 348 और श्री वी. एन. श्रीवास्तव पूर्व निदेशक, राजकीय संग्रहालय, पं गो. प. अल्मोड़ा द्वारा संपादित और निदेशक., राज्य संग्रहालय, लखनऊ द्वारा प्रकाशित पुस्तिका के पृष्ठ सं 102 में उदघृत है। इस तरह कई और भी ताम्रपत्र होंगे जिसमें तिखौन गांव से सम्बन्धित क्षेत्रीय जनता को भूमि चाहे वह गूॅठ (भूमिदान ) में दी गयी हो या कुशल कार्य क्षमता के लिए दी गई होगी। यह दस्तावेज इस तिखौन गांव व कोट के बारे में महत्वपूर्ण स्रोत हैं।

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    तिखौन कोट की चोटी से लिया गया चित्र


    इस तिखौन कोट के पूर्वी भाग में तल्ला, मल्ला डॉगी गांव, दौलाघट पश्चिम में कुवॉली, बग्वाली पोखर, उत्तर में कोरीछीना, गल्ली, बस्यूरा तथा दक्षिण में तिखौन गांव व मजखाली विद्यमान हैं। इसके अतिरिक्त इस स्थान से लगभग तीस पैंतीस गांवों में अपनी दृष्टि डाली जा सकती है। पूर्व राजतंत्र के कत्यूर व चंद राजवंश में तिखौन बहुत बड़ी पट्टी थी। जो तल्ली व मल्ली तिखौन पट्टी के नाम से सम्बोधित की जाती थी। आज भी मल्ला तिखौन में एक पट्टी है। इस पट्टी में वर्तमान समय में लगभग सात गांव ही विद्यमान है जबकि पूर्व में तीस पैंतीस गांव आते थे।


    वर्तमान समय में तिखौन कोट के दक्षिणी पार्श्व में तिखौन गांव है। इस गांव के मध्य में एक टीला है। यह टीला 10×7×2 मी.(ल.×चौ.×ऊ) का है। वर्तमान समय में टीला खेत की फसल तैयार होने के बाद फसल को चूटने एवं सुखाने के काम में लाया जाता है अर्थात यह कहा जा सकता है कि यह खल है। पूर्व में गांव के मध्य में इस प्रकार के खेल को राजखाली भी कहा जाता था। इस टीले के ही दक्षिणी पार्श्व में लगभग 15×20×1 मी. (ल.×चौ.×ऊ) एक और टीला है, जिसमें रानी का महल था। अभी भी प्रस्तर खण्ड के कुछ अवशेष दिवारों में लगे हैं। वर्तमान समय में विद्युत विभाग द्वारा विद्युत पारेषण लाईन बिछाये जाने से यह स्मारक भी खत्म हो चुका है।


    वर्तमान समय में यह भी देखा गया है कि जो भी हमारे पूर्वजों द्वारा निर्मित कोट, किले बुंगे, राजखली आदि बनाये गये हैं उन स्थलों में लगभग 80 प्रतिशत जनता ने देवी देवताओं को स्थापित कर उस जगह की प्रतिष्ठा को बढ़ाया है। क्षेत्रीय पर्यटन विभाग के माध्यम से इस स्थल का विकास कर बाह्य शैलानियों के लिए एक अच्छा पर्यटन स्थल बन सकता है। यह स्थल मुख्य सड़क मार्ग से जुड़े होने से सरकार का अधिक व्यय भी नहीं होगा। यहां पर तिखौन कोट का सौन्दर्यीकरण कर मुख्य सड़क के पास सांकेतिक पट्ट लगवाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिल सकता है। यह हमारे पूर्वजों द्वारा निर्मित धरोहर है। इसे आने वाली पीढ़ी के लिए विरासत के रूप में बचाकर रखना हम सभी का नैतिक कर्त्तव्य होना चाहिए।



    लेखक -डॉ. चन्द्र सिंह चौहान (बाड़ी बगीचा, अल्मोड़ा)
    सर्वाधिकार -
    पुरवासी, श्री लक्ष्मी भंडार (हुक्का क्लब), अल्मोड़ा


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