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    नारायण दत्त तिवारी

    Prasoon joshi

    नारायण दत्त तिवारी

     जन्म:  अक्टूबर 18, 1925
     जन्म स्थान: बल्यूटी, पदमपुरी, नैनीताल
     पिता:  श्री पूर्णानंद तिवारी
     माता:  -
     पत्नी:  स्व. सुशीला तिवारी, उज्ज्वला तिवारी
     व्यवसाय:  राजनेता
     मृत्यु:  अक्टूबर 18, 2018


    नारायण दत्त तिवारी गुदड़ी के वह लाल हैं जिन्होंने भारतीय राजनीति की पथरीली राहें तय कर संघर्ष, श्रम, साधना से शानदार राजनीतिक सफलता प्राप्त की है। अत्यन्त साधारण परिवार में जन्म लेकर इन्होंने बचपन से ही निरंतर संघर्षरत रहकर श्रम, साधना और अध्यवसाय के सोपानों पर चढ़कर भारतीय राजनीति की उल्लेखनीय ऊँचाइयों तक पहुँचाया।


    प्रारंभिक जीवनी


    नारायण दत्त तिवारी जी की जन्म 18 अक्टूबर 1925 को ग्राम बल्यूटी, पदमपुरी, नैनीताल में हुआ था। उनका बचपन नैनीताल में ही बीता। तिवारी जी की प्राम्भिक शिक्षा की शुरुआत नैनीताल से हुई और फिर उन्होंने बरेली में आगे की शिक्षा हासिल की। उनके पिता पूर्णानंद तिवारी जीवन विभाग में अधिकारी के पद पर कार्यरत थे। उनके पिता जी की गाँधीवादी विचारधारा से प्रभावित थे। इसके चलते उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी छोड़ दी औऱ गाँधी जी के साथ असहयोग आन्दोलन में जुड़ गए। अपनी शिक्षा पूर्ण करने के उपरांत नारायण दत्त तिवारी जी अपने पिता जी के पद चिन्हों  पर चलते हुए देश की आजादी आंदोलन में उतर आये।


    राजनीतिक जीवन


    उ.प्र. की राजनीति के अजातशत्रु कहे जाने वाले तिवारी जी के राजनीतिक जीवन का शुभारम्भ 19 दिसम्बर, 1942 के दिन से होता है। स्वाधीनता आन्दोलन में भाग लेने पर इस दिन पिता-पुत्र दोनों एक साथ गिरफ्तार कर लिए गए। 7 मार्च, 1944 को बरेली जेल से रिहा हुए। विद्यार्थी जीवन से ही इन्हें राजनीति से लगाव रहा। गोल्डन जुबली छात्रवृत्ति पाकर इलाहाबाद से इन्होंने एम ए, डिप्लोमेसी एण्ड इन्टरनेशनल अफेयर्स की उपाधि प्राप्त की। इसी दौरान 1944 में पडित नेहरू से अनुज्ञा लेकर कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य बने। अगस्तए 1947 में इलाहाबाद विण्विण् छात्र संघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए।


    विद्यार्थी जीवन में ही इनका संपर्क पंडित जवाहर लाल नेहरू, जय प्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया और आचार्य नर्रेन्द्र देव जैसे चिन्तकों और समाजवादियों से हो गया था। पंडित मदन मोहन मालवीय जैसी विभूतियों के सान्धिय में रहने का भी इन्हें अवसर प्राप्त हुआ। सबसे पहले जिला नैनीताल को इन्होंने अपना कर्मक्षेत्र चुना। जनपद का चप्पा-चप्पा पैदल चलकर छान डाला। धुंआधार भाषण दिए। पूंजीवाद, साम्राजवादी और स्तालिनवाद के आसन्न खतरों से आम जनता को सावधान किया। इसके साथ ही तिवारी जी ने कुमाऊँ रोडवेज कर्मचारी यूनियन, नगरपालिका कर्मचारी यूनियनए समाजवादी युवक सभा, चीनी मिल मजदूर यूनियन, काठगोदाम रेलवे कुली यूनियन जैसे दर्जनों श्रमिक संगठनों का स्वयं गठन कर सफलतापूर्वक उनका नेतृत्व किया।


    ● 1952 में तिवारी जी सक्रिय राजनीति में उतरे। प्रथम आम चुनाव में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के रूप में नैनीताल से विधान सभा का चुनाव लड़ा और विजयी हुए। इस चुनाव में तिवारी जी ने कांग्रेस के सशक्त उम्मीदवार श्यामलाल वर्मा को हराया था। उस समय उ.प्र. विधान सभा में पहुँचने वाले तिवारी जी सबसे कम आयु; 26 वर्ष के विधायक थे।

    ● 1963 के आम चुनाव तक समाजवादी पार्टी में बिखराव चरम पर पहुँच गया था। तिवारी जी इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी देवेन्द्र सिंह मेहरा से नैनीताल सीट हार गए। 1965 में उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली।

    ● 1966 में युवक कांग्रेस के अखिल भारतीय संयोजक नियुक्त किए गए।

    ● 1967 में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में काशीपूर विधान सभा सीट से चुनाव लड़ा किन्तु राम दत्त जोशी के मुकाबले हार गए।

    ● 1969 मध्याविध चुनाव में यहाँ से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते और चन्द्रभानु गुप्त मंत्रिमंडल में पहली बार सीधे कैबिनेट स्तर के मंत्री बने।

    ● आपातकाल के मघ्य 21 जनवरी 1976 में उण्प्रण् के मुख्यमंत्री का पदभार ग्रहण किया।

    ● 1980 में नैनीताल संसदीय क्षेत्र से जीत गए।

    ● 3 अगस्त 1984 को दूसरी बार उ.प्र. के मुख्यमंत्री बने और 11 मार्च 1985 को तीसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।

    ● अगस्त 1987 में काशी विद्यापीठ ने डीण्लिट की मानद उपाधि से सम्मानित किया

    ● 25 जून 1988 को चौथी बार उ.प्र. में मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की।

    ● 20 जुन 1995 को पार्टी विरोधी गतिविधियों और हवाला कांड में आरोपित होने के कारण छह वर्षों के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया गए। दिसम्बर 1996 में वापस पार्टी में आ गए।

    ● 1993 और 1997 में संसदीय चुनावों में पराजय का मुंह देखना पड़ा।
    -2002 से 2007 तक तिवारी जी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे हैं।

    ● 2007 से 2009 तक आंध्रप्रदेश के राज्यपाल रहे। सेक्स स्कैंडल के आरोप के चलते उनको इस्तीफा देना पड़ा।

    ● नारायण दत्त तिवारी जी एक मात्र ऐसे नेता है जो आज़ादी के बाद दो प्रदेशों, उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे है।


    व्यक्तिगत जीवन


    अपने व्यक्तिगत जीवन में नारायण दत्त तिवारी ने दो शादियां की उनकी पहली पत्नी स्वर्गीय सुशीला तिवारी थी जिनसे उन्होंने 10 मई, 1954 में शादी की लेकिन 1993 में उनका देहांत हो गया। उनकी दूसरी शादी उज्ज्वला तिवारी से अंतः 2014 में हुई जब 2008 में उनके बेटे रोहित शेखर तिवारी द्वारा पितृत्व मुकदमा दायर किया गया था और डीएनए टेस्ट के बाद उन्होंने उज्ज्वला तिवारी और अपने बेटे शेखर को अपना लिया।


    ख़ास बातें


    ● 1942 में ब्रिटिश विरोधी पत्र लिखने की वजह से 15 महीनो की जेल हुईा। 

    ● 1954 में उन्होंने पहली शादी सुशीला तिवारी से की थी।

    ● 1947 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष रहे।

    ● अखिल भारतीय युथ कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष रहे।

    ● 1994 में कांग्रेस छोड़कर अखिल भारतीय कांग्रेस; तिवारी द्वारा बनाई अर्जुन सिंह के साथ।

    ● 1990 में महज 800 वोटो से चुनाव हारने की वजह से वे प्रधानमंत्री पद की दौड़ से अलग हो गए और नरसिम्हा राव आगे हो गए।

    ● 2017 में भाजपा को विधान सभा चुनाव में आशीर्वाद देने के सिलसिले में चर्चा में आये लेकिन पार्टी ज्वाइन नहीं की।


    मृत्यु


    लम्बे समय से बीमार चल रहे नारायण दत्त तिवारी जी ने दिल्ली के साकेत स्थित मैक्स अस्पताल में 18 अक्टूबर, 2018 को आखिरी सांस ली। अपने 92वां जन्मदिन के मौके पर उन्होंने आखिरी सांस ली।


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