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    मिरासी तथा उनकी बोली

    भारत में बंजारे अनेक समुदायों के रूप में हैं जो घूमते रहते हैं। ये नट, बेरिया आदि अनेक नामों से जाने जाते हैं। इनकी घुमक्कड़ टोलियां अफ्रीका के पूर्व और पश्चिमी क्षेत्र से लेकर न्यूजीलैंड तक पहुँच चुकी हैं। इन घुमक्कड़ जिप्सी जातियों का उद्गम स्थान भारत है। इनकी भाषा भारतीय मूल की है। ये लोग जहाँ भी गये वहाँ की भाषा के अनुरूप अपनी बोली में परिवर्तन करते गये।


    अखिल भारतीय बंजारा सेवा संघ द्वारा सन् 1968 में प्रकाशित स्टडी टीम का सूक्ष्म अध्ययन करने के बाद ब्रिटेन की जिप्सी कौंसिल के संस्थापक ग्राटन पक्सन को यह बात मालूम हुई कि यूरोप में रहने वाले रोमा और स्टडी टीम द्वारा उल्लिखित गोर लोगों की संस्कृति, भाषा और रीति रिवाजों में अनेक बातों में समानता पायी जाती है। ऐतिहासिक प्रमाणों से भी यह बात सिद्ध होती है कि रोमा और गोर दोनों ही उत्तर पश्चिम भारत के विशेष रूप से प्राचीन वृहद पजाब और राजस्थान क मूल निवासी हैं।


    आज भारत के 26 राज्यों में ये घुमक्कड़ बजारा समुदाय के लोग रहते हैं। इनकी जनसंख्या लगभग 6 करोड़ है। उनकी खास बोली ही अपनी एकमात्र पहचान रह गयी है। इस समय उत्तराखण्ड में करीब एक हजार पाँच सौ मिरासी लोग रहते हैं। ये लोग बागेश्वर कपकोट, तेजम, पुंगराऊं, बरम तथा मुनस्यारी में रहते हैं। टेहरी के खास पट्टी में भी इनके कुछ परिवार रहते हैं। यह शोध का विषय है कि उत्तराखण्ड के मिरासी लोग भी घुमक्कड़ बंजारा समुदाय के लोग तो नहीं हैं? उनकी बोली का समग्र अध्ययन करने के पश्चात ही इसका पता लग सकता है।


    मिरासियों की बोली कुमाउंनी भाषा तथा जोहारी बोली से भिन्न है। भिन्नता का अन्दाजा निम्नलिखित उदाहरण से लगाया जा सकता है -


     हिंदी  मिरासी भाषा
     कहां जा रहे हैं ? कां गछनाहा ?
     खाना (भात) खा लिया ?  सुवार सुबाहे ?
     मिर्च दे दो  पिरूख हिवा
     चलो  खुरपा
     वह कौन है ?  बू को ठीकन
     लोग देखेंगे  ख्यास तिगपाला
     मत बोलो  ना चोला

    भिक्षु चमनलाल ने युगोस्लाविया, बुल्गारिया, हंगरी, स्वीडन, सोवियत संघ तथा अमेरिका के करीब तीस हजार जिप्सी लोगों से सम्पर्क किया तथा तीन हजार से अधिक रोमानी शब्द यह सिद्ध करने के लिए एकत्र किए कि अपने भारतीय उद्गम के सम्बन्ध में उनका दावा सही है। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा शोध कार्य के लिए प्रेरणा तथा सहायता मिलने पर उन्होंने सन् 1960 में फ्रांस में जिप्सियों के एक बड़े सम्मेलन में भाग लिया। विस्तारित अध्ययन के पश्चात चमनलाल ने एक पुस्तक 'जिप्सी : भारत की विस्तृत संतति' लिखी जिसको भारत सरकार के प्रकाशन विभाग ने 1984 में प्रकाशित किया।


    पंडित राहुल सांस्कृत्यान प्रतिष्ठान दिल्ली ने विमुक्त, घुमंतू जातियोंजन जातियों और हाशिए के लोगों पर केन्द्रित 'बंधन' पत्रिका के अप्रेल 2003 तथा जनवरी, 2004 के अंकों में बंजारा और रोमा संस्कृति पर विशेषांक प्रकाशित किया। इन दोनों अंकों में बंजारों का घुमन्तू समाज तथा रोमा संस्कृति पर शोधपूर्ण लेख प्रकाशित हुए।


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