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    कुर्मांचल का राजतंत्र

    स्कन्दपुराण के अनुसार मान्यता है कि कुमाऊँ में एक टीले के ऊपर भगवान विष्णु ने कछुए या कूर्म का अवतार धारण किया था। चन्द राजाओं का राज्य पहले इसी काली कुमाऊँ में रहा। अल्मोड़ा का नाम पहले बारहमण्डल था। यहां बारह राजाओं का एक मण्डल था। पंद्रहवीं शताब्दह के प्रारम्भ तक बारहमण्डल के बारह उपखण्ड थे। प्रत्येक का अपना राजा था। अल्मोड़ा पहाड़ी के पश्चिम में रैला राजा रहता था और दक्षिण की ओर खगमरा महल कत्यूरी राजा बैछलदेब का था। पंद्रहवी शताब्दी के प्रारम्भ में (1420 ई.) एक चन्द वंशी राजा उद्यान चन्द ने बारहमण्डल के एक राजा महरयूड़ी को हरा कर अपने राज्य में शामिल कर लिया। एक दिन की बात है चन्द राजा ने रैला राजा से कहा - तुम प्रत्येक दिन हमें दो तीतर भेंट स्वरूप पेश करोगे। चन्द राजा के प्रस्ताव को स्वीकार कर रैला राजा उन्हें दो तीतर भेंट स्वरूप पेश करने लगा। बाद बाद में रैला राजा दो तीतर भेंट स्वरूप पेश करने में असमर्थ होने लगा। असमर्थता के कारण वह भयभीत होने लगा। और अपना महल छोड़कर भाग गया। दूसरी ओर खगमरा महल का कत्यूरी राजा भी चन्द राजा के भय से अपना महल छोड़कर स्यूनरा भाग गया। वहां स्यूनरा राजा को हटा कर वह स्वयं स्यूनरा का शासन करने लगा। जब चन्द राजा को पता चला तो उसने उसे हरा कर अपने राज्य में मिला लिया। चन्द वंश के राजाओं में इस कार्य को किराती चन्द ने पंद्रहवीं शताब्दी (1490) में पूरा किया। किराती चन्द ने बिसौद के कत्यूरी राजा को स्यूनरा से भी भगा दिया। स्यूनरा में रहने वाले लोगों को बोरारौं और कैड़ारौं में बसा दिया। इस तरह चन्द शासक किरातीचन्द ने धीरे धीरे बारहमण्डल विजय का कार्य पूरा किया।


    सेलहवीं शताब्दी (1560) के मध्य में एक चन्द शासक बालो- कल्याण चन्द अपनी राजधानी काली कुमाऊँ के किले के पास घटकू देवता का मंदिर था। मंदिर के चारों ओर देवदार का जंगल था। यहां घटकू देवता के नाम पर मेला लगता है। जिस टीले के उपर घटकू देवता का मंदिर बना है उसे ही स्कन्दपुराण का कुर्मांचल कहा जाता है । बालोकल्याण चन्द ने अपने खास लोगों को अल्मोड़ा के आस पास पहले से ही बसा रखा था। उसने इस जगह का नाम अपने खास लोगों की वजह से खास प्रजा रख दिया। चन्द वंश के शासक अब यहां रहकर शासन करने लगे। वे इस पूरे क्षेत्र को तब राजापुर कहा करते थ। काफी लंबे समय तक सम्पूर्ण कुमाऊँ (कुर्मांचल) में चन्द वंश का शासन चलता रहा। अन्तिम चन्द वंशी राजा आनन्द सिंह चन्द रहे।


    चन्द शासन के बाद लगभग 25 वर्षों तक कुमाऊँ में गोरखा राज्य रहा। गोरखा सेना सन् 1790 ई. के आरम्भ में डोटी से कुमाऊँ पर आक्रमण करने चल पड़ी। सेना के दो दल बनाए गए। पहला चम्पावत की ओर दूसरा दल सोर पहुँचा। सोर के वर्तमान रा.बा.इ.का. के स्थान पर गोरखा सेना ने अपना किला स्थापित किया। जगजीत पांडे और अमर सिंह थापा के नेतृत्व में कुमाऊँ को जी कर गोरखा सेना गढ़वाल की ओर बढ़ी। गढ़वाल के राजा ने 12 वर्षों बाद सेनापति अमर सिंह थापा ने गढ़वाल के राजा प्रद्युम्न साह को देहरादून के युद्ध में स दिया।


    दूसरे दल के सेनापति जगजीत पांडे थे। उनके नेतृत्व में गोरखा सेना ने अल्मोड़ा पर अपना अधिकार जमा लिया। जगजीत पांडे और पं हर्षदेव जोशी कुमाऊँनी सेना के अधिकारी बन गए। शीघ्र ही गोरखा सेना ने पूरे कुमाऊँ-गढ़वाल को अपने अधिकार में ले लिया। चन्द शासन का अन्त हो गया। गोरखा शासन अपनी निरंकुशता की मिसाल बन गया। सन् 1797 ई. में श्री पदमानन्द जोशी को फौजदार के साथ शासन की कार्य व्यवस्था देखने के लिए नियुक्त किया गया। गोरखा शासन क कर्मचारी झिजाड़, दन्या, दिगोली, कलौनी, ओलिया गांव और गली के जोशी रहे। द्वाराहाट के चौधरी, उपराड़ा, स्यूनराकोट, खूँट के पंत कामदारी में रहे। 1815 ई. में निंरकुश गोरखा शासन का अन्त हुआ।


    अब शासन की बागडोर अंग्रेजों के पास आ गईं। अंग्रेजों ने इसका नाम राजापुर से बदल कर अल्मोंड़ा रख दिया। यह नाम एक प्रकार की घास के आधार पर है। यह घास यहां अत्यधिक होती थी। इस घास को अल्मोड़ा घास कहते हैं। इसका वानस्पतिक नाम स्यूमेक्स हेस्टाटा है।


    प्रारम्भ में अंग्रेजों ने सम्पूर्ण उत्तराखण्ड को अपने निवास स्थान के रूप में विकसित किया। सन् 1857 ई. पूर्व कुमाऊँ में अंग्रेजों का शासन शान्ति पूर्ण रहा। बाद में भारत के अन्य मंडलों की तरह कुमाऊँ मण्डल की जनता भी अंग्रेजी शासन व्यवस्था से धीरे धीरे तंग होने लगी। तब स्वतंत्रता आन्दोलन में यहां के लोगो ने भी बढ़ चढ़ कर भागीदारी की। 1857 के विद्रोह का आंशिक असर कुमाऊँ पर भी पढ़ा। उस समय कुमाऊँ के कमिश्नर सर हेनरि रैमजे थ। 1857 में जो वारदातें काली कुमाऊँ, अल्मोड़ा और श्रीनगर में हुई थी उनको रैमजे ने निर्दयता से कुचल दिया। इसके बाद काली कुमाऊँ की जनता ने अपने वीर नेता कालू मेहरा के नेतृत्व में एक गोपनीय सैन्य संगठन की व्यवस्था की। रैमजे ने इसका भी दमन कर दिया और कालू महरा अपने दो साथियों के साथ पकड़े गए। उन्हें बाद में गोली मार दी गई। कालू महरा के छोटे भाई ने अंग्रेजों की डर से आत्म हत्या कर डाली।


    सर हेनरी रैमजे ने 44 वर्षो तक कुमाऊँ में अंग्रज प्रशासक के रूप में कार्य किया। उन्हें कुमाऊँ का बेताज बादशाह कहा जाता था। वे स्काटलैण्ड निवासी थे। कुमाऊँ में वे कुमाऊँ का राजा और राम जी साहब के नाम से प्रसिद्ध थे। सर हेनरी रैमजे धारा प्रवाह कुमाऊँनी भाषा बोलते थे। लार्ड डलहौजी उनके चचेरे भाई थे। तराई भाबर को बसाने का श्रेय सर हेनरी रैमजे को ही जाता है। वर्तमान रामनगर शहर उनके द्वारा ही बसाया गया है। इसलिए उनके नाम पर इसे रामनगर कहा जाता है। इनके नाम पर नैनीताल में रामजे अस्पताल और अल्मोड़ा में रैमजे इन्टर कालेज हैं। ब्रिटिश शासन में उनका सहायक अल्मोड़ा निवासी श्री बद्रीदत्त जोशी थे।


    अंग्रेजों के इस राजतंत्रनुमा शासन व्यव्स्था को उखाड़ फैकने में कुछ कुमाऊँनी शिक्षकों का भारी योगदान रहा। सालम के सपूत श्री राम सिंह धौनी सूरत गढ़ स्कूल के अध्यापक थे। श्री धौनी के बाद में फतेह पुर स्कूल के प्रधानाध्यापक बने। इन्होने 1921 में देश को ’जयहिन्द’ का नारा दिया। स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़ चढ़ कर भागीदारी के कारण इन्हें सालम का सपूत कहा जाता हैं।


    खुमाड़ सल्ट के श्री पुरूषोत्तम उपाध्याय प्राइमरी स्कूल के प्रधानाध्यापक थे। 22 मार्च 1922 को जब महात्मागांधी की गिरफ्तारी हुई तो श्री उपाध्याय ने सल्ट क्षेत्र में स्वतंत्रता आंदोलन की अगवाई की। नौकरी से स्तीफा देकर कुमाऊँ को देश समेत स्वतंत्र करने के लिए एक विशाल जलूस को ले कर रानीखेत गिरफ्तारी देने गए। खुमाड़ सल्ट के प्राइमरी स्कूल के स. अ. श्री लक्ष्मण्स सिंह अधिकारी ने भी नौकरी से स्तीफा दे दिया। श्री पुरूषोत्तम उपाध्याय के जेल जाने के बाद सल्ट से स्वतंत्रता आन्दोलन की कमान श्री लक्ष्मण सिंह अधिकारी ने ही संभाली। आजादी के बाद ये 1958 में रानीखेत विधान सभा के सदस्य भी रहे।


    बिचला चौकोट प्राइमरी स्कूल के प्रधानाध्यापक श्री ज्योर्तिराम काण्डपाल ने भी अपने पद से स्तीफा दे दिया था। 1930 में वे अपने साथी श्री भैरव दत्त जोशी के साथ डांडी नमक सत्याग्रह में कूद पड़े।


    अन्ततः देश के सभी कर्णधारों के प्रयास से लोकतंत्रात्मक व्यवस्था को लागू करने का प्रयास किया जाने लगा। आज हमारा देश भारत एक विकसित लोकतंत्रात्मक व्यवस्था का देश है।



    लेखक -आनन्द सिंह बिष्ट
    संदर्भ -
    पुरवासी - 2009, श्री लक्ष्मी भंडार (हुक्का क्लब), अल्मोड़ा, अंक : 30




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