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    कुंजापुरी देवी

    kunjapuridevi

    ‌देवी कुंजापुरी मां को समर्पित कुंजापुरी देवी मंदिर उत्तराखण्ड के टिहरी गढ़वाल में स्थित है। यह मंदिर उत्तराखण्ड में स्थित 51 शक्तिपीठों में से एक है। उत्तराखण्ड के दर्शनीय स्थलों में से एक देवी कुंजापुरी मां का मंदिर भी है। समुद्रतल से यह मंदिर लगभग 1645 मीटर की उॅंचाई पर स्थित है। इस मंदिर तक पहुंचने पर आपको खूबसूरत नजारा देखने को मिलता है। यहॉं से आप उत्तराखण्ड की कई महत्वपूर्ण चोटियों को देखने का आंनद ले सकते हो। मंदिर के उत्तर से आप बंदरपंच (6,320 मी.), स्वर्गारोहिणी (6,248 मी.), गंगोत्री (6,672 मी.) और चौखम्भा (7,138 मी.) और दक्षिण से ऋषिकेश, हरिद्वार जैसी घाटियों को आसानी से देखा जा सकता है।


    कैसे पहुचे :


    ‌कुंजापुरी मंदिर नरेन्द्र नगर से 13 कि.मी.ऊंचाई पर स्थित है। नरेन्द्र नगर का अपना एक इतिहास है। यह जगह 1903 में नजरों के सामने आई जब तत्कालीन टिहरी रियासत के राज नरेन्द्र शाह ने नरेन्द्र नगर को अपनी राजधानी बनाने का फैसला लिया था। इससे पहले टिहरी रियासत की राजधानी प्रतापनगर थी।


    मोटर मार्ग- यह मंदिर ऋषिकेश से शुरू होने वाले राजमार्ग 94 में स्थित है जो की नयी टिहरी तक पहुचाता है।ऋषिकेश से नयी टिहरी के लिए बस सेवा है और टेक्सी सेवा भी उपलब्ध है।


    रेल मार्ग- टिहरी पहुचने के लिए सबसे सुगम मार्ग ऋषिकेश से होते हुए जाता है। ऋषिकेश से निकटतम रेलवे स्टेशन है हरिद्वार रेलवे स्टेशन जो यहाँ से 27 कि.मी. की दुरी पे स्थित है।


    वायु मार्ग- कुंजापुरी मदिर से सबसे समीप हवाई अड्डा है जौलीग्रांट है जो की देहरादून स्थित है जो यहाँ 43 कि.मी. की दुरी पे स्थित है।


    पौराणिक महत्व :


    ‌पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि राजा दक्ष की पुत्री सती का विवाह भगवान शिव से हुआ था। राक्षसों से अपनी जीत की खुशी में सभी देवताओं को बुलाया गया पर भगवान शिव को इसमें आने के लिए निमंत्रण नहीं भेजा। यह बात यह बात भगवान शिव की पत्नी और दक्ष की बेटी सती को बिल्कुल भी पंसद नही आया। खुद को अपमानित महसूस पाकर सति ने अपने प्राणों की आहूति उसी यज्ञ में दे दी। जिसके बाद भगवान शिव ने सती के शरीर को उस यज्ञ से निकाला और कई सालों तक पूरे आकाश में घूमते रहे। जहां—जहां उनके शरीर के हिस्से घिरे उन जगहों को सिद्धपीठ के नाम से गिना जाने लगा। उदाहरण के लिए नैना देवी का मंदिर उसकी जगह पर स्थित है जहां उनकी आंखें गिरी थीं, ज्वाल्पा देवी मंदिर उसकी जगह स्थित है, जहां उनकी जिह्वा गिरी थी, सुरकंडा देवी मंदिर उसकी जगह पर स्थित है, जहां उनकी गर्दन गिरी थी और चंदबदनी देवी मंदिर भी उसी जगह पर स्थित है, जहां उनके शरीर का नीचला भाग गिरा था, कुंजा मंदिर उसी जगह पर स्थित है जहां उनका उपरी हिस्सा गिरा था।


    कोई प्रतिमा नहीं है स्थापित :


    ‌मंदिर की खूबसूरती देखते ही बनती है। मंदिर के प्रवेश द्धार पर बड़े आकार का बोर्ड है जिस पर लिखा गया है कि यह मंदिर 197वीं फील्ड रेजीमेंट (कारगिल) द्वारा भेंट किया गया है। इस मंदिर तक पहुॅंचने के लिए आपको 308 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है। इस मंदिर की खास बात यह है कि इसमें किसी भी प्रकार की कोई भी मूर्ति नही है। मंदिर के अंदर एक गड्ढा है। जिसके बारे में कहा जाता है यह वही गड्ढा है जहां कुंजा गिरा था। उसी के पास में देवी की एक छोटी सी मूर्ति स्थापित की गई है जहां पूजा की जाती है। 01 अक्टूबर 1979 से 25 फ़रवरी 1980 के बीच मंदिर का नवीनीकरण किया गया था।


    आरती समय :


    ‌मंदिर में आरती का आयोजन प्रतिदिन प्रातः 6.30 एंव सायं 5 से 6.30 बजे तक किया जाता है।


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