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    कटारमल सूर्य मंदिर

     

     कटारमल सूर्य मंदिर

     स्थापना:1080-90 ई० 
     स्थान:  कटारमल गाँव, कोसी 
     विकाशखंड: हवालबाग, अल्मोड़ा 
     स्थापित:  1116 मीटर 
     प्राथमिक देवता:  सूर्य "बड़ादित्य" 

    उत्तराखण्ड के कुमाऊँ क्षेत्र में स्थित यह मंदिर भगवान सूर्य "बड़ादित्य" को समर्पित है। भारत में कोणार्क मंदिर ओड़िशा के बाद कटारमल सूर्य मंदिर को सबसे बड़ा सूर्य मंदिर माना जाता है, देश में इन दो मंदिरों के अतिरिक्त भी कुछ स्थानों में सूर्य मंदिर है। इस मंदिर में सूर्य पदमासन मुद्रा में बैठे हैं, कहा जाता है कि इनके सम्मुख श्रद्धा, प्रेम व भक्तिपूर्वक मांगी गई हर इच्छा पूर्ण होती है। इसलिये श्रद्धालुओं का आवागमन वर्ष भर इस मंदिर में लगा रहता है, भक्तों का मानना है कि इस मंदिर के दर्शनों से ही हृदय में छाया अंधकार स्वतः ही दूर होने लगते हैं और उनके दुःख, रोग, शोक सब मिट जाते हैं और मनुष्य प्रफुल्लित मन से अपने घर लौटता है। कटारमल गांव में स्थित छत्र शिखर वाला मंदिर पदमासन सूर्य के भव्य व आकर्षक प्रतिमा के कारण प्रसिद्ध है। यह भव्य मंदिर भारत के प्रसिद्ध कोणार्क के सूर्य मंदिर के पश्चात दूसरा प्रमुख मंदिर भी है।

     

    स्थिति

    कटारमल कोसी से 3 किमी०, जिला अल्मोड़ा से 16 किमी०, नैनीताल से 70 किमी० और रानीखेत से 32 किमी० की दूरी पर स्थित है। यह समुद्र तल से 2116 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसके नजदीक भारत सरकार द्वारा स्थापित जी.बी. पन्त हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान जो अनुसंधान और विकास के लिए एक नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है।

    इतिहास

    कटारमल्ल देव (1080-90 ई०) ने अल्मोड़ा से लगभग 7 मील की दूरी पर बड़ादित्य (महान सूर्य) के मंदिर का निर्माण किया था। उस गांव को, जिसके निकट यह मंदिर है, अब कटारमल तथा मंदिर को कटार्मल मंदिर कहा जाता है। यहां के मंदिर पुंज के मध्य में कत्यूरी शिखर वाले बड़े और भव्य मंदिर का निर्माण राजा कटारमल्ल देव ने कराया था। कटारमल के मन्दिर में सूर्य पद्मासन लगाकर बैठे हुए हैं। यह मूर्ति एक मीटर से अधिक लम्बी और पौन मीटर चौड़ी भूरे रंग के पत्थर में बनाई गई है। यह मूर्ती बारहवीं शताब्दी की बतायी जाती है। मंदिर की दीवार पर तीन पंक्तियों वाला शिलालेख, जिसे लिपि के आधार पर राहुल सांस्कृत्यायन ने दसवीं - ग्यारहवीं शती का माना है, अस्पष्ट हो गया है। इसमें राहुल जी ने "मल्ल देव" तो पढ़ा था, सम्भवतः लेख में मंदिर के निर्माण और तिथि के बारे में कुछ सूचनायें थी, जो अब अपाठ्य हो गई है। मन्दिर में प्रमुख मूर्त बूटधारी आदित्य (सूर्य) की है, जिसकी आराधना शक जाति में विशेष रुप से की जाती है। इन मंदिरों में सूर्य की दो मूर्तियों के अलावा विष्णु, शिव, गणेश की प्रतिमायें हैं। मंदिर के द्वार पर एक पुरुष की धातु मुर्ति भी है, राहुल सांस्कृतायन ने यहां की शिला और धातु की मूर्तियों को कत्यूरी काल का बताया है। आर्कियोलॉजिस्ट डा. डिमरी के मुताबिक कटारमल सूर्य मन्दिर को 11वीं शताब्दी का माना जाता है। मगर, कुछ ऐसे प्रमाण मिले हैं, जिससे कह सकते हैं कि यहां पर सूर्य मन्दिर आठवीं-नवीं शताब्दी में भी था। उस समय के कुछ लकड़ी के गुंबद पहले खोजे जा चुके हैं। जिन्हें दिल्ली के नेशनल म्यूजियम में रखा गया है। हो सकता है कि इसके बाद भी यहां पर मन्दिर का पुनर्निर्माण किया गया हो।

     

    दिल्ली नेशनल संग्रालय में रखे मंदिर के द्वार

    हर्मेन गोयट्ज के अनुसार मंदिर की शैली प्रतिहार वास्तु के अन्तर्गत है। इस मंदिर की स्थापना के विषय में विद्वान एकमत नहीं हैं, कई इतिहासकार यह मानते हैं कि समय-समय पर इसका जीर्णोद्धार होता रहा है। लेकिन वास्तुकला की दृष्टि से यह सूर्य मंदिर 21 वीं शती का प्रतीत होता है। वैसे इस मंदिर का निर्माण कत्यूरी साम्राज्य के उत्कर्ष युग में 8 वी- 9 वीं शताब्दी में हुआ था। इस ऎतिहासिक प्राचीन मंदिर को सरकार ने प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्व स्थल घोषित कर राष्ट्रीय सम्पत्ति घोषित कर दिया है। मंदिर में स्थापित अष्टधातु की प्राचीन प्रतिमा को मूर्ति तस्करों ने चुरा लिया था, जो इस समय राष्ट्रीय पुरातत्व संग्रहालय, दिल्ली में रखी गई है साथ ही मंदिर के लकड़ी के सुन्दर दरवाजे भी वहीं पर रखे गये हैं।


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