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    कल्याण बिष्ट | कल बिष्ट | गैराड़ गोलू

    danagolu

    ‌कल्याण बिष्ट (अनुमानित जीवनावधिः 18वीं सदी का मध्यकाल): पाटिया गाँव के पास कोट्यूड़ाकोट, जिला अल्मोड़ा। राजपूतवंशीय केशव कोट्यूड़ी का पुत्र। अद्भुत वीर, साहसी, चरित्रवान पुरुष, अकाल मृत्यु को प्राप्त हुआ। कालान्तर में सम्पूर्ण कुमाऊँ, विशेषतः पाली पछाऊँ और कफड़खान के आसपास क्षेत्र में आज तक देवता रूप में पूजित। लोक कथाओं में कलबिष्ट और कलुवा नामों से भी प्रसिद्ध है।


    ‌कल्याण बिष्ट सुमधुर मुरली बजाता था। वह गाएं चराने का काम करता था। बिनसर में सिद्ध गोपाली के घर दूध पहुंचाने का काम था उसका । एक किवदन्ती के अनुसार मधुसूदन पाण्डे उर्फ नौलखिया पाण्डे की पत्नी कमला पंडिताइन कल्याण बिष्ट की मुरली बजाने की कला पर मोहित थी। वह किसी न किसी बहाने उसका सामीप्य भी चाहती थी। इसलिए वह अपने घर में पूजा-पाठ व मंगल कार्यों के बहाने कल्याण बिष्ट से दूध-दही मंगवाती थी। इनके बीच सम्पर्क का काम पंडिताइन की एक सेविका लछिमा करती थी। एक दूसरी किवदन्ती में नौलखिया पाण्डे की पत्नी की जगह पाटिया के श्रीकृष्ण पाण्डे की पत्नी का नाम लिया जाता है। श्रीकृष्ण पाण्डे की नौलखिया पाण्डे से शत्रुता थी। एक बार नौलखिया पाण्डे भराड़ी' नाम के एक भूत को इस उद्देश्य से ले आया कि वह श्रीकृष्ण पाण्डे को सताए। कल्याण बिष्ट ने 'भराड़ी' को भगा दिया। ‘भराड़ी' नौलखिया पाण्डे के घर चला गया। अपनी असफलता पर पाण्डे खिन्न था। उसने झूठ प्रचार किया कि श्रीकृष्ण पाण्डे की पत्नी और कलुवा के आपस में अवैध सम्बन्ध हैं। लोकापवाद के भय से विचलित होकर श्रीकृष्ण पाण्डे ने राजा से कलुवा को मरवाने का आग्रह किया। इस कार्य हेतु जयसिंह टम्टा को नियुक्त किया गया। राजा ने कल्याण बिष्ट को बुलाया। कल्याण बिष्ट के मस्तक पर त्रिशूल और पैर में कमल पुष्प का चिन्ह देखकर राजा को आभास हुआ कि इसे तो वीर और सचरित्र होना चाहिए। कल्याण बिष्ट ने राजा को और भी कई वीरतापूर्ण कौतुक दिखाए। कल्याण के एक घोर विरोधी दयाराम के षड़यंत्र से उसे राजा के आदेश पर भाबर भेज दिया गया। उन दिनों कुमाऊँ वासियों के लिए भाबर जाना कालापानी जैसा था। उसने जाते-जाते। दयाराम से कहा कि यदि कपटपूर्वक मुझे मारा गया तो मैं भूत बनकर बदला लूंगा।


    ‌कल्याण बिष्ट की मृत्यु के बारे में विभिन्न किवदन्तियां हैं। इसके बाद कल्याण बिष्ट का 'कफड़खान' में 'दोष' नामक प्रेत से भी युद्ध हुआ। इसमें कलबिष्ट विजयी हुआ। अन्ततः श्रीकृष्ण पाण्डे लखड्योड़ी को उसे मारने भेजा गया। इस लड़ाई में कल्याण बिष्ट और लखड्योड़ी दोनों मर गए। कल्याण बिष्ट ने लखड्योड़ी को श्राप दिया कि 'तूने धोखा दिया है, अतः तेरा वंश नहीं चलेगा, तू निर्वश होगा।' इसका कथानक दूसरे रूप में भी सुनने में आता है। पं. रुद्रदत्त पन्त के अनुसार, कल्याण बिष्ट किसी ब्राह्मण (श्रीकृष्ण पाण्डे) के हाथों मरा। एटकिन्सन ने हिम्मतसिंह के हाथों मारा जाना स्वीकारा है। कल्याण बिष्ट की हत्या के सम्बन्ध में पूर्ण सच्चाई यह है कि उसकी हत्या, उसी की कुल्हाड़ी से। उसके सगे जीजा लछम सिंह ने की थी।


    ‌यह सुनिश्चित है कि धोखे से मारे जाने पर कलबिष्ट की आत्मा देवता या भूत रूप में पूजित। हुई। कफड़खान्त में कल्याण बिष्ट का पहला मंदिर बना। वैसे तो कल्याण बिष्ट के भक्त पूरे कुमाऊ। में है, लेकिन पाली पछाऊँ और कफड़खान के आसपास लोगों में व्यापक श्रद्धा है। अन्याय से पीड़ित लाग न्याय की कामना से कल्याण बिष्ट के यहां घात भी डालते हैं। पशुओं की रक्षा के लिए भी कल्याण बिष्ट की पूजा होती है, क्योंकि वह ग्वाला था।


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