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    जू या जुवा

    जुवा बैलों के कंधों (कानी) पर ज्योतिड़ की सहायता से लटकाया जाता है जिसका सम्पर्क नाड़ा। की मदद से लाठा यानि सम्बन्धित उपकरण से होता है। दरअसल खेती में काम आने वाले उपकरणों का यह एक महत्वपूर्ण भाग है, जिसकी मदद से कृषि उपकरण व बैलों को जोड़ा जाता है।


    तुन या उतीस की लकड़ी से बना जुवा लगभग 40-42 इंच लम्बा व 1 इंच मोटाई युक्त होता है। इसके मध्य में लगभग 2-2½ इंच मोटा छिद्र होता है। इसी छिद्र में नाड़ा लपेटकर सम्बन्धित यंत्र/उपकरण से सम्पर्क होता है।


    जुवे के दोनों सिरों पर लगभग 3½ इंच की दूरी पर पहला छिद्र बनाया जाता है, जबकि दूसरा छिद्र पहले छिद्र से 7 इंच की दूरी पर होता है। इस प्रकार जुवे के हर एक किनारे के दो छिद्रों के बीच की दूरी इंच होती है, जिनमें बांस के 18 इंच लम्बे लकड़ी के डंडे जिन्हें सैल कहा जाता है, फंसाये जाते है। भीतरी सैलों के बाहरी सिरे तिकोने कटे हुए होते हैं और बाहरी सैलों पर सुतली की तरह मोटी रस्सी जिन्हें ज्योतिड़ कहा जाता है बंधी होती है। बैल के कंधों को इन्हीं सैलों के बीच रखकर ज्योतिड़ के सहारे भीतरी सैलों के तिकोने कटे हुए भाग तक लाकर बांध दिया जाता है। जुवे के दो सैलों के बीच में कपड़ा भी लपेटा जाता है। ऐसा करने से बैलों के कन्धों पर लकड़ी से नुकसान या निशान नहीं पड़ता है।


    जुवे स्थानीय काश्तकारों द्वारा पाँच-छ: घंटे में तैयार कर लिया जाता है। इसे गढ़वाल में कनेथो कहा जाता है।
    जुवे व हल दोनों भागों को जोड़ने वाला नाड़ा जिसे रिहाड़ा या अणा भी कहा जाता है, जानवरों के चमड़े से बना होता है। आजकल प्लास्टिक के ताँत वाले नाड़े ज्यादा प्रचलन में हैं।


    नाड़ा की मदद से जुवे व लाठे को किलणी की सहायता से जोड़ा जाता है। लाठे के अगले भाग को कपू कहा जाता है।
    तुन की लकड़ी से बना जुवा लगभग 300 रुपये में तैयार होता है। तुन की लकड़ी का जुवा बनाने का कारण इसका हल्का होना तो है ही साथ ही यह पवित्र भी माना जाता है।

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