KnowledgeBase


    ज्ञान प्रकाश कच्चाहारी

    मानवतावादी राष्ट्रीय एकता-अखण्डता-सम्पन्नता के पोषक बालब्रह्मचारी डॉ. ज्ञानप्रकाश कच्चाहारी (जन्म : 15 अक्टूबर, 1935) रिटायर्ड प्रथम श्रेणी चिकित्साधिकारी खादीधारी ने 9 अगस्त, 1942 को 'अंग्रेजो, भारत छोड़ो आंदोलन' में भाग लिया था। महर्षि दयानन्द से अनुप्राणित पिता पं. लालमणि और माता शिववती के साथ ज्ञानप्रकाश ने 1943 में भरवारी (इलाहाबाद) रेलवे स्टेशन पर महात्मा गाँधी का दर्शन किया था।


    इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीएससी करने के बाद अध्यापक बने ज्ञान प्रकाश ने महात्मा गाँधी की पुण्यतिथि (30 जनवरी : कृष्ठ निवारण दिवस) से प्रेरणा लेकर कुष्ठ रोगियों की सेवा हेतु कानपुर मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस करते समय चार संकल्पों (सम्पूर्ण भारत में प्रथम - महानिषेध, द्वितीय - पशुबलि बन्दी, तृतीय - कक्षा 10+2 तक समान पाठ्यक्रम, चतुर्थ - एक गुरुकुल की स्थापना) के साथ कच्चाहार तथा आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत लिया। उक्त कोई तीन संकल्प पूर्ण होने, अन्यथा पच्चीस वर्षीय कच्चाहार व्रत।


    1984 में गुरुनानक जयन्ती (कार्तिक पूर्णिमा) पर "गुरुकुल गंगातट बिठू (कानपुर)" स्थापित करने के बाद, अन्य दो संकल्पों को धूमिल देखकर डॉ. कच्चाहारी ने 15 अक्टूबर, 1987 को पच्चीस वर्षीय कच्चाहार व्रत पूर्ण किया। शिक्षामंत्री मानवीय कपिल सिब्बल द्वारा 2010 में सम्पूर्ण भारत में समान पाठ्यक्रम लागू करने के निर्णय से डॉ. कच्चाहारी को अति संतोष मिला।


    भारत-चीन युद्ध 1962 में ज्ञानप्रकाश ने स्वरचित शब्दांकित चित्रों (महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरू, राजेन्द्रप्रसाद, सुभाष चन्द्र बोस, स्वामी नारदानन्द व महर्षि दयानन्द) की नीलामी कराकर, पन्द्रह हजार छह सौ अठहत्तर रुपये "राष्ट्रीय सुरक्षा कोष" में जमा कराया।


    17 अगस्त, 1966 को प्रांतीय स्वास्थ्य सेवा में आकर डॉ. कच्चाहारी कानपुर में टीबी अस्पताल, जिला अस्पताल, पुलिस अस्पताल व जेल अस्पताल में सेवा करने के बाद 19 नवम्बर, 1971 से प्रास्वाकेन्द्र बार (ललितपुर) में सेवा करते हुए, गाँव-गाँव में मद्यनिषेध-स्वास्थ्य शिविर आयोजित करते रहे तथा अपने अहिंसाचरण से दुर्दान्त डाकू भैरोसिंह को देशभक्त नागरिक बनाया।


    9 सितम्बर, 1974 से प्रास्वाकेन्द्र ताड़ीखेत (अल्मोड़ा) में सेवा करते हुए 1975 में सदा के लिए अंग्रेजी परिधान त्याग करने वाले धोती कुर्ताधारी सर्जन डॉ. कच्चाहारी ने 1976-77 में पैंतालीस सौ से अधिक नसबन्धी ऑपरेशन करके जनपद में प्रथम स्थान प्राप्त किया।


    पद्मश्री देवकीनन्दन पाण्डे, स्वतंत्रता सेनानी बाँकेलाल कंसल, महात्मा गाँधी की अंग्रेज शिष्या सरलाबहन और भारतरत्न मदर टेरेसा के जीवनदर्शन से प्रभावित डॉ. कच्चाहारी ने पूर्णरूप से कुष्ठ निवारण हेतु समर्पण का मन बनाया और 6 जुलाई, 1986 को नवसृजित 'जिला कुष्ठ अधिकारी पिथौरागढ़' का सेवाभार मिल गया। उन्हें चर्मरोग व कुष्ठ प्रशिक्षण हेतु चिंगल पट (चेन्नई) भेजा गया।


    सुलेखक-चित्रकार डॉ. कच्चाहारी स्वयं कुष्ठ व चर्म रोग सम्बन्धी नारे सुदूर ग्रामों में लिखते हुए रोगियों को उपचार देते रहे तथा "राष्ट्रीय कुष्ठ निवारण कार्यक्रम" को आगे बढ़ाया। उनके कुर्ते की पीठ पर "एम.डी.टी. खायें। कुष्ठ रोग भगायें। चर्म रोग एवं कुष्ठ, प्रारम्भ में एक जैसे।" लिखा नारा मिलेगा। पिथौरागढ़ कुष्ठ मिशन हास्पिटल' में मिस मैरीरीड के मिशन को भी सचल कर उत्तराखण्ड के कुष्ठ मुक्त होने पर डॉ. कच्चाहारी को 6 जनवरी, 2003 को 'रेड एण्ड व्हाइट गोल्ड अवार्ड' से सम्मानित किया गया।


    भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय के हिंदी सलाहकार डॉ. तारासिंह से निर्देशन व जानकारी लेकर अब डॉ. कच्चाहारी, कुष्ठ सहित पोलियो-एड्स-टीबी-जनसंख्या नियंत्रण-कन्या भ्रूण हत्या निषेध आदि राष्ट्रीय कार्यक्रम में 75 वर्ष की आयु में भी योगदान दे रहे हैं।


    उत्तराखंड मेरी जन्मभूमि वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप उत्तराखंड मेरी जन्मभूमि

    हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: फेसबुक पेज उत्तराखंड मेरी जन्मभूमि

    हमारे YouTube Channel को Subscribe करें: Youtube Channel उत्तराखंड मेरी जन्मभूमि

    Related Article

    Leave A Comment ?