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    देवीदत्त शर्मा

    सम्पूर्ण हिमालय क्षेत्र की भाषाओं पर 12 भागों में प्रकाश्यमान अनुसंधान योजना के लिए 1984 में नेहरू फेलोशिप और वि.वि. अनुदान आयोग द्वारा एमेरिटस फेलोशिपसे सम्मानित हैं। दर्जन से अधिक भारतीय एवं विदेशी भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री शर्मा जी इस विधा के लिए ऐसा सम्मान पाने वाले उत्तराखण्ड के पहले व्यक्ति हैं। मात्र उत्तराखण्ड की भाषाओं पर अब तक आपके आधे दर्जन से अधिक ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं। इनके अतिरिक्त अब तक इनके हिन्दी में दसपंजाबी में एक, संस्कृत में दो, अंग्रेजी में सोलह और हिन्दी में अनूदित दो ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं।


    प्रारंभिक जीवन


    24 अक्टूबर, 1924 में नैनीताल जिले की नौकुचिया झील के करीब स्थित जंगलिया गाँव में पैदा हुए देवीदत्त शर्मा अपने पाँच भाइयों में चौथे नंबर के थे। तीन ही वर्ष की उम्र में उनके पिता की मृत्यु को गई थी। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा वहाँ के छोटा 'कैलास' नाम से प्रसिद्ध पहाड़ी पर स्थित 'बानना' के प्राइमरा स्कल में हुई जो उनके गाँव से पाँच मील की दूरी पर स्थित था। मिडिल स्कूल की पढ़ाई के लिए उन्हें रोज दस मील भीमताल आना-जाना पड़ता था। नजदीक स्कूल न होने के कारण प्राय: बच्चे चौथी कक्षा के बाद पढ़ना छोड़ देते थे। इसलिए घरों में ही रह जाने वाले बच्चों को, बुलन्दशहर के नखर से पढ़कर आये सिलौटी गाँव के आनंद बल्लभ शास्त्री ने अपने घर में पढ़ाने का काम शुरू किया तो देवीदत्त भी उनके पास पढ़ने के लिए जाने लगे। उस पढ़ाई, इम्तहान देकर कक्षोन्नत होने का कोई प्रावधान नहीं होता था पर उस अनौपचारिक पढ़ाई से बच्चों के मन में वह रूझान पैदा हो जाता था जो ब्राह्मण नौजवानों के ब्रह्मवृत्ति के रोजगार के लिए उपयोगी होता है। होनहार बच्चों में स्वाध्याय के संस्कार पैदा करना भी उसका उद्देश्य होता था।


    देवलचौड़ में खेती करने वाले अपने वंश विरादरी के लोगों की सद्भावना व सहाय्य से देवीदत्त के बड़े भाई रेवाधर शर्मा हल्द्वानी में आलुओं की आड़त लगाने लगे थे। उन्होंने छोटे भाई देवीदत्त को हल्द्वानी दिखाया। सोचा होगा मण्डी-बाजार और भाबर-देस की बड़ी दुनियां में जाकर बात-व्यवहार व हाथ-पैर चलाना सीखेगा तो रोजी-रोजगार की सहूलियत होगी। उसी दरमियान सन् 36-37 में रेलवे बाजार में संस्कृत पाठशाला खुली तो वहां भी भाई का नाम लिखवा दिया।


    शिक्षा


    उस पाठशाला के पहले बैच में देवीदत्त ने मध्यमा की परीक्षा पास की जो उन दिनों तीन वर्ष की होती थी। हल्द्वानी में स्कूलों की उपलब्धता होने से होशियार देवीदत्त ने प्राइवेट छात्र के रूप में मध्यमा के साथ-साथ हाईस्कूल की परीक्षा भी पास कर ली। दोनों प्रकार के शिक्षण व्यवस्था का लाभ लेने की इस शुरूआत से किशोर देवीदत्त को रास्ता मिल गया। गुरुकुल किस्म की संस्कृत शिक्षा और आधुनिक, दस व दो, दो-दो की सीढ़ियों से एम.ए. तक पहुँचाने वाली शिक्षा की दो रेलिंगों को थाम कर वे ऊपर चढ़ते ही गए।


    आपने आगरा विश्वविद्यालय से संस्कृत में प्रथम श्रेणी से एम.ए., वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में आचार्य एवं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से संस्कृत के धुरंधर विद्वान पद्मभूषण आचार्य बलदेव जी उपाध्याय के निर्देशन में पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़ में अध्यापन कार्य करते हुए आपने पद्मभूषण डॉ. सिद्धेश्वर वर्मा के सानिध्य में भाषा-शास्त्र एवं ध्वनि-विज्ञान का गहन ज्ञान प्राप्त किया जिसके फलस्वरूप पंजाब विश्वविद्यालय ने आपको पी.एच.डी. तथा डी.लिट् की उपाधियां प्रदान की। इसी अवधि में आपने फ्रेंच, जर्मन तथा फारसी में भी स्नातकीय उपाधियां प्राप्त कीं और 1989 में विभागाध्यक्ष के पद पर सेवा-निवृत हो गए।


    अनेक भाषाओं में लिखे शोध पत्र


    आपने हिन्दी, अंग्रेजी, पंजाबी, हिमाचली तथा लद्दाख से लेकर भूटान तक की संस्कृति, बोली, भाषा और समाज पर सैकड़ों शोध पत्रों एवं दर्जनों ग्रन्थों की रचना कर महत्वपूर्ण कार्य किया है। जो आने वाले समय में तथा वर्तमान शोधार्थियों के लिए कल्पवृक्ष के समान फलदायी होगा। आपके द्वारा किए गए महत्वपूर्ण अनुसंधानों ने सारे प्रदेश को गौरवान्वित किया है। संस्कृत साहित्य, भाषा-विज्ञान एवं हिमालयी संस्कृतियों पर आपके 56 अनुसंधान ग्रन्थ एवं 200 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। इन विषयों पर अकेले उत्तराखण्ड पर आपके 12 अंग्रेजी और 16 हिन्दी में ग्रन्थ प्रकाशित हैं। आप दो दर्जन भारतीय एवं पाश्चात्य भाषाओं की जानकारी रखते हैं।


    सम्मान


    ▸ इन क्षेत्रों में आपके महत्वपूर्ण कार्यों के लिए जवाहर लाल नहेरू स्मारक निधि द्वारा "जवाहर लाल नेहरू नेसनल फैलोशिप", विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की ओर से तीन वर्ष के लिए "एमेरिटस फैलोशिप" प्रदान की गई।


    ▸ कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरूक्षेत्र द्वारा "एमेरिटस प्रोफेसर" के रूप में संस्कृत एवं भाषा-विज्ञान के अनुसंधान कार्य के लिए आपको आमंत्रित किया गया।


    ▸ आपको इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कलाकेन्द्र, दिल्ली द्वारा "कल्चरल हिस्ट्री ऑफ उत्तराखण्ड" पर शोध कार्य के लिए प्रथम "इन्दिरा गांधी मैमोरियल फैलोशिप" प्रदान की गई।


    ▸ विभिन्न अकादमियों एवं विश्वविद्यालयों द्वारा आपको "कालीदास पुरस्कार", "अखिल भारतीय विद्वत सम्मान", "सहस्त्राब्दि मिलेनियम सम्मान", "युगाब्द विद्वत सम्मान", तत्कालीन महामहिम राष्ट्रपति श्री के.आर. नारायण द्वारा संस्कृत में पाडित्य एवं शास्त्र-निपुणता के लिए "मानपत्र", "राष्ट्रीय भागीदारी सम्मान", "साहित्य शिरोमणि सम्मान", "वरिष्ठ विद्वत सम्मान", "केदार गौरव सम्मान", "कुमाऊँ गौरव सम्मान", "साहित्यकार सम्मान", "विशिष्ट विद्वान सम्मान", "बल्लभ भाई पटेल इण्टरनेसनल अवार्ड" सम्मानों से नवाजा जा चुका है। आपको उत्तराखण्ड प्रशासन के भाषा संस्थान द्वारा डेढ़ लाख रुपये के "महत्तर सम्मान" से भी सम्मानित किया गया।


    ▸ 2011 में महामहिम राष्ट्रपति द्वारा आपको "पद्मश्री अलंकरण" से अलंकृत किया गया है।


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