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    बालेश्वर मंदिर

    चम्पावत में बालेश्वर रत्नेश्वर और चम्पावती नामक मंदिरों के आसपास ताड़केश्वर, वनेश्वर, हरेश्वर, मानेश्वर ऋषेश्वर, रामेश्वर, पंचेश्वर आदि मंदिर हैं। इनमें बालेश्वर मंदिर आठवीं या नौवीं शती में निर्मित हुआ। दस शती के उत्तरार्द्ध में, जब कत्यूरी राजा देशटदेव ने इसे भूमि प्रदान की, उसके पहले से मंदिर चला आता था। ध्यान (उद्यान) चन्द्र (1420-22) ने ज्ञानचन्द के पापों के प्रायश्चित के लिए बालेश्वर मंदिर का जीर्णाद्धार आरम्भ किया था। इसको विक्रम चन्द्र (1423-34) ने पूरा किया। जीर्णाद्धार के समय मंदिर की दीवारों का जो भव्य अलंकरण किया गया उस पर राजस्थानी - गुजराती शैली का प्रभाव बताया जाता है। चम्पावत में चन्द वंश की आदि राजधानी होने के कारण चन्द राजाओं ने बालेश्वर को भूमि प्रदान करने का पुण्य प्राप्त किया।


    बालेश्वर मंदिर समूहों का मुख्य मंदिर शिव मंदिर है। इसके बाहर एक शिलालेख बड़े पत्थर पर स्थापित है जिसमें सन् 1293 का उल्लेख है। उस शिव मंदिर का शिवलिंग शुद्ध नीलम का बना है। यह मंदिर कलात्मक फूल व पत्तियों से बनी पत्थरों की दीवार से बनाया गया है। इसके मुख्य द्वार पर दो नंदी पत्थरों के बने हैं। जिसमें एक ओर फन धारी सर्प पर भगवान शिव को दिखाया गया है, स्थान-स्थान पर शिव को नटराज व अन्य रूपों में दिखाया गया है। मंदिर की दीवार के बाहरी हिस्से में पक्षियों व नारियों के चित्र तथा एक स्थान पर भगवान बुद्ध की प्रतिमा भी है। इससे साबित होता है कि इस स्थान पर बौद्ध धर्म का भी प्रभाव रहा होगा। बालेश्वर मंदिर समूह में गणेश जी का मंदिर भी है। गणेश जी के मंदिर में एक शावक के साथ उसके दो बच्चे भी दिखाये गये हैं।


    एक अन्य मंदिर में शिव और पार्वती के चित्र एक ही पत्थर पर अर्द्ध प्रणय की सी अवस्था में दिखाये गये हैं। इस मंदिर के ऊपरी भाग में 50 से भी अधिक चित्र विभिन्न देवी देवताओं के पत्थर पर अंकित हैं। आकर्षक कला द्वारा एक गोल पत्थर पर कृष्ण के नाग दहन को प्रदर्शित किया गया है। कृष्ण की प्रतिमा से साबित होता है कि इस स्थान पर स्थापत्य कला महाभारत कालीन थी क्योंकि चन्द शासक शिव उपासक थे। इस मंदिर की छत एक विशाल पत्थर से निर्मित है। छत के भीतरी भाग पर चन्द कालीन स्थापत्य कला का अनूठा रूप देखते ही बनता है। बालेश्वर मंदिर के प्रवेश द्वार से पूर्व एक प्राचीन पानी की बावड़ी की दीवार मिलती है जिसके साथ विशाल आँगन भी बनाया गया है। इस बावड़ी की दीवार पर सूर्य प्रतिमा अंकित है, ऐसा प्रतीत होता है। कि इस बावड़ी का निर्माण कत्यूरी शासकों ने करवाया होगा। चन्द शासन काल के नाग मंदिर, राजा का सिंहासन, एक हथिया नौला, ग्वेल देवता का मंदिर, घटोत्कच मंदिर आदि दर्शनीय स्थल हैं। चम्पावत को आदि ऐतिहासिक ग्रन्थों में काली कुमाऊं के नाम से भी जाना जाता है। उसके पीछे कथायें हैं। प्रथम के अनुसार चम्पावत से सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित कूर्माचल पर्वत से जुड़ी कथा है जिसका उल्लेख पौराणिक ग्रन्थों में भी मिलता है। कहते हैं कि समुद्र मंथन के समय इसी पर्वत पर कूर्मांवतार हुआ। आदि काल में इसे कूर्मांनगरी कहते थे। कालान्तर में उसी के अनुरूप चम्पावत के आधुनिक विकासखण्ड कार्यालय के समीप चन्द्र राजाओं के शासनकाल की सबसे बड़ी बाजार लगा करती थी। जिसे काली कुमाऊँ का बाजार कहा जाता था।


    दूसरी लोकोक्ति के अनुसार चम्पावत के समीप फुंगर गांव में कमारू नामक दानव राज्य करता था। ऐसा कहा जाता है कि बाद में चन्द शासकों ने उसी की याद में उस स्थली को काली कुमाऊँ का नाम दिया। लेकिन उपरोक्त तथ्य मनगढ़न्त लगते हैं। ये बातें किस्से कहानियों तक तो उचित हैं लेकिन ऐतिहासिक विवादों का निपटारा नहीं कर सकते, नवीन खोज के रूप में माना जाय या तथ्य युक्त सबूत के रूप में माना जाये। यहाँ यह उल्लेखित करना आवश्यक है कि चंद राजाओं ने शक शासकों के उपरान्त राज्य विस्तार की चेष्टा की थी। उनका प्रथम लक्ष्य 12 किलोमीटर दूरी पर काली से मिले हुए राज्य पर विजय प्राप्त करना था। कहते हैं कि काली नदी का तट बहुत उपजाऊ था। अत: उस क्षेत्र के शासक के पास अस्त्र-शस्त्रों की कोई कमी नहीं थी। बताया जाता है कि दोनों राज्यों के मध्य छोटी-मोटी झड़पों को छोड़कर एक बार अनवरत रूप से बारह वर्षों तक युद्ध होता रहा, जिसमें अंत में चंद शासकों को विजय मिली, इसी खुशी में चम्पावत को काली कुमाऊँ नाम दिया गया होगा। चम्पावत चंद राजाओं की राजधानी थी और बालेश्वर मंदिर क्षेत्र का एक छोटा जिला था। क्योंकि बालेश्वर तत्कालीन व्यवस्थानुसार उसमें सभी प्रकार के साधन सुलभ थे।


    वर्तमान चम्पावत नगर क्षेत्र की आबादी से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर एक छोटा सा वन है। उसी के मध्य स्थित है महाभारत काल के वीर योद्धा और लघु अवस्था तक मायावी और अतुल शारीरिक बल पर जीने वाले वीर घटोत्कच का मंदिर। द्वापर युग के इस मायावी दानव की माता और मामा का इस क्षेत्र में एक छत्र शासन था। माता का नाम हिडिम्बा तथा मामा का नाम कुमड़ राक्षस था। घटोत्कच महाभारत काल का एक ऐसा वीर व्यक्तित्व था जो मायावी और मानवीय दोनों ही अस्तित्व रखता था। यदि उसके चरित्र को मायावी अधिक और मानवीय कम कहा जाय तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। वर्तमान चम्पावत नगर में देवदार वन के मध्य घटोत्कच का मंदिर स्थापित है। कुमड़ राक्षस का वास्तविक नाम कुम राक्षस था और कालान्तर में उसी नाम से उस क्षेत्र का नाम कुमाऊँ पड़ा। द्वापर का यह राक्षस शासक यहां कहां से और कैसे आया। उसका भी स्पष्ट ऐतिहासिक स्पष्टीकरण कहीं नहीं मिलता है।


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